भगवान तुम्हारे मंदिर में, भगवान तुम्हारे मंदिर में,
मैं तुम्हें रिझाने आई हूँ |
वाणी में तनिक मिठास नहीं, वाणी में तनिक मिठास नहीं,
मैं विनय सुनाने आई हूँ |
अति वंचित हूँ क्या भेंट धरूँ, अति वंचित हूँ क्या भेंट धरूँ
भगवान तुम्हारी सेवा में |
प्रभु के चरणों में फूलों के, प्रभु के चरणों में फूलों के
दो हार चढ़ाने आई हूँ |
पूजा को फल और पात्र नहीं, पूजा को फल और पात्र नहीं
फिर भी तो यह साहस देखा |
अभिमान भरा जो इस मन में, अभिमान भरा जो इस मन में
मैं उसे चढ़ाने आई हूँ |
प्रभु का चरणामृत लेने को, प्रभु का चरणामृत लेने को
दासी का कोई पात्र नहीं |
नैनों के खाली प्यालों में, नैनों के खाली प्यालों में
चरणामृत लेने आई हूँ |
भगवान तुम्हारे मंदिर में…..
वाणी में तनिक मिठास नहीं, वाणी में तनिक मिठास नहीं,
मैं विनय सुनाने आई हूँ |
अति वंचित हूँ क्या भेंट धरूँ, अति वंचित हूँ क्या भेंट धरूँ
भगवान तुम्हारी सेवा में |
प्रभु के चरणों में फूलों के, प्रभु के चरणों में फूलों के
दो हार चढ़ाने आई हूँ |
पूजा को फल और पात्र नहीं, पूजा को फल और पात्र नहीं
फिर भी तो यह साहस देखा |
अभिमान भरा जो इस मन में, अभिमान भरा जो इस मन में
मैं उसे चढ़ाने आई हूँ |
प्रभु का चरणामृत लेने को, प्रभु का चरणामृत लेने को
दासी का कोई पात्र नहीं |
नैनों के खाली प्यालों में, नैनों के खाली प्यालों में
चरणामृत लेने आई हूँ |
भगवान तुम्हारे मंदिर में…..
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Author - Saroj Jangir
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