भारत माँ की खातिर लहू बहा देना

भारत माँ की खातिर लहू बहा देना

सुन बेटा सुन मेरे लाड ले,
माँ धरती का ऋण जरा बेटे तू चूका देना,
भारत माँ की खातिर लहू बहा देना,

वो दर पे जाते बेटे इतना तो याद रखना,
पीछे कदम हटे न आगे है तुझको बढ़ना,
दुश्मन हज़ारो है निरबह निडर लड़ना,
बबर शेर के जैसे तू अकर्मण करना,
अंजाम भले कुछ हो न पीठ दिखाना,
भारत माँ की खातिर लहू बहा देना,

कट जाए शीश तेरा इसका न कोई गम हो,
सीने में बहके जवाला आंखे न तेरी नम हो,
माना यहाँ सारा ये रंग बिरंगा है,
प्यारा हमे सबसे अपना तिरंगा है,
ये झुकने न पाये बेटे प्राण गवा देना,
भारत माँ की खातिर लहू बहा देना,

यु तो जहां में जीवन जीते है लोग सारे,
जिन्दा मगर वही है जो होंसला न हारे,
तुम हिन्द के सांगी मिटटी में मिल जाए,
मेरी गोद सुनी हो पर फूल खिल जाए,
तू सुर वीर है अपना फ़र्ज़ निभा देना,
भारत माँ की खातिर लहू बहा देना,


धरती माँ का ऋण चुकाने के लिए वीर बेटे का लहू बहाना सबसे बड़ा कर्तव्य है। माँ की पुकार में बेटे को निडर होकर दुश्मनों का सामना करने और कभी पीछे न हटने की प्रेरणा दी गई है। यह उद्गार मन को उस साहस की याद दिलाता है, जो बब्बर शेर की तरह आक्रामक और अडिग होता है। जैसे कोई विद्यार्थी अपने गुरु की सीख को जीवन में उतारकर कठिनाइयों पर विजय पाता है, वैसे ही यह भजन हर सैनिक को मातृभूमि की रक्षा के लिए प्रेरित करता है।

तिरंगे की शान को बनाए रखने और इसके लिए प्राण तक न्योछावर करने का भाव देशभक्ति की उस ज्वाला को दर्शाता है, जो आँखों को नम नहीं होने देती। यह भाव उस सत्य को उजागर करता है कि तिरंगा भारत की आत्मा है, और इसे झुकने न देना हर वीर का परम धर्म है। जैसे कोई संत अपने जीवन को सत्य और धर्म के लिए समर्पित करता है, वैसे ही यह भजन बेटे को मातृभूमि के लिए सर्वस्व अर्पित करने का आह्वान करता है।
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