धरती प्यारी माँ हमारी माँ से प्यारी कौन

धरती प्यारी माँ हमारी माँ से प्यारी कौन है

धरती प्यारी माँ हमारी माँ से प्यारी कौन है,
लूट ती है माँ की आरबु फिर भी हम मौन है,
धरती प्यारी माँ हमारी माँ से प्यारी कौन है,

जिस ने जनम दियां है वो आसार में खड़ी,
बाजार देने वाला शैतान कौन है,
धरती प्यारी माँ हमारी माँ से प्यारी कौन है,

माटी की कोख से मेले कई हीरे बेशुमार,
मिटटी का सौदा कर रहे वो लोग कौन है,
धरती प्यारी माँ हमारी माँ से प्यारी कौन है,

धरती की सच्चे लाल हम किशन मर गये,
जिसने है पर्थ ये कातिल कौन है,
धरती प्यारी माँ हमारी माँ से प्यारी कौन है,

धरती माँ की गोद ने हमें अनगिनत हीरे और खजाने दिए, फिर भी हम उसकी आबरू को बाजार में बेचने से नहीं चूकते। यह उद्गार मन को उस कटु सत्य से रूबरू कराता है कि स्वार्थ और लालच ने हमें धरती के प्रति अपनी जिम्मेदारी से विमुख कर दिया है। जैसे कोई विद्यार्थी अपने गुरु के उपकार को भूलकर गलत मार्ग पर चल पड़ता है, वैसे ही मानव धरती माँ की कीमत को भूलकर उसका शोषण कर रहा है।

धरती के सच्चे लाल, जो इसके लिए मर मिटे, उनकी शहादत को याद करते हुए यह भजन उस प्रश्न को उठाता है कि आखिर इस माटी के कातिल कौन हैं। यह भाव उस सत्य को उजागर करता है कि धरती की रक्षा के लिए लड़ने वाले वीरों का बलिदान हमें जिम्मेदारी का बोध कराता है। जैसे कोई संत प्रकृति को ईश्वर का रूप मानकर उसकी सेवा करता है, वैसे ही यह भजन हमें धरती माँ के प्रति अपनी भक्ति और कर्तव्य को याद दिलाता है।

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