खेलत नंद आंगन गोविन्द हिंदी मीनिंग
खेलत नंद आंगन गोविन्द हिंदी मीनिंग
खेलत नंद-आंगन गोविन्द।
निरखि निरखि जसुमति सुख पावति बदन मनोहर चंद॥
कटि किंकिनी कंठमनि की द्युति लट मुकुता भरि माल।
परम सुदेस कंठ के हरि नखबिच बिच बज्र प्रवाल॥
करनि पहुंचियां पग पैजनिया रज-रंजित पटपीत।
घुटुरनि चलत अजिर में बिहरत मुखमंडित नवनीत॥
सूर विचित्र कान्ह की बानिक कहति नहीं बनि आवै।
बालदसा अवलोकि सकल मुनि जोग बिरति बिसरावै॥४॥
निरखि निरखि जसुमति सुख पावति बदन मनोहर चंद॥
कटि किंकिनी कंठमनि की द्युति लट मुकुता भरि माल।
परम सुदेस कंठ के हरि नखबिच बिच बज्र प्रवाल॥
करनि पहुंचियां पग पैजनिया रज-रंजित पटपीत।
घुटुरनि चलत अजिर में बिहरत मुखमंडित नवनीत॥
सूर विचित्र कान्ह की बानिक कहति नहीं बनि आवै।
बालदसा अवलोकि सकल मुनि जोग बिरति बिसरावै॥४॥
सूरदास जी ने इस पद में श्री कृष्ण जी के बालरूप का चित्रण किया है जो की अत्यंत महत्पूर्ण है. जिसे देखकर जसोदा माता सुख प्राप्त कर रही हैं, हर्षित हो रही हैं. श्री कृष्णा जी का रूप अत्यंत ही मनोहर है. श्री कृष्ण जी की कमर पर मोतियों से भरी हुई माला शोभित है.
शब्दार्थ- किंकिनी करधनी। लट अलक। मुकुता भरि मोतियों से गुही हु। सुदेस सुंदर। केहरि नख बघनखा बाघ के नख जो बच्चों के गले में सोने से मढ़कर पहना दिये जाते हैं। बज्र हीरा। प्रवाल मूंगा। रज-रंजित धूल से सना हुआ। अजिर आंगन। मुख-मंडित नवनीत मुंह मक्खन से सना हुआ है। बानिक शोभा।
नंद के आंगन में गोविंद (कृष्ण) खेल रहे हैं। यशोदा उन्हें बार-बार देखकर मन ही मन सुख और आनंद का अनुभव करती हैं। उनका मनोहर मुख चंद्रमा-सा सुंदर है। कमर में किंकिणी (घुंघरू) और गले में मणियों का हार चमक रहा है, सिर पर मुकुट और लटों में माला शोभा दे रही है। गले में सुंदर हार और नख-शिख तक का सौंदर्य ऐसा है, मानो वज्र और प्रवाल (मूंगा) की चमक हो।
हाथों में कंगन और पैरों में पैंजनियां (पायल) खनक रही हैं, जिनका रज (धूल) पीले वस्त्रों पर सज गया है। घुटनों के बल चलते हुए वे आंगन में खेल रहे हैं, और उनका मुख नवनीत (माखन) से सजा हुआ है। सूरदास कहते हैं कि कान्हा की यह बाल-लीला इतनी विचित्र और मनमोहक है कि उसे वर्णन करने में शब्द कम पड़ जाते हैं। उनके इस बाल-रूप को देखकर सभी मुनियों और योगियों का ध्यान और वैराग्य भूल जाता है।
जीवन एक आंगन है, जहां प्रभु की लीलाएं अनंत रंग बिखेरती हैं। बाल-गोपाल का खेल केवल खेल नहीं, प्रेम और पवित्रता का उत्सव है। उनका हर अंग, हर हाव-भाव, जैसे चंद्रमा की किरणें, मन को आलोकित करता है। घुंघरू की झंकार, माखन से सजा मुख, और धूल में रंगे वस्त्र—यह सब सादगी और दिव्यता का मेल है, जैसे सरलता में ही परम सौंदर्य बसता हो।
यह लीला उस मां के प्रेम को दर्शाती है, जो अपने लाल को निहारकर सुख के सागर में डूब जाती है। यह प्रेम ऐसा है, जो बिना शर्त, बिना अपेक्षा, केवल होने में ही पूर्ण है। गोपाल का यह रूप संसार को सिखाता है कि सच्चा आनंद छोटी-छोटी बातों में है—एक मुस्कान, एक खनक, एक नटखट नजर में।
उनका यह बाल-रूप इतना मनोहर है कि ज्ञानी भी अपना ज्ञान भूल जाते हैं, और योगी अपने तप को। यह प्रेम की शक्ति है, जो हर बंधन, हर विचार को मुक्त कर देती है। जैसे आंगन में खेलता बालक सबका मन चुरा लेता है, वैसे ही प्रभु का यह रूप आत्मा को बांध लेता है, और जीवन को प्रेममय बना देता है।
हाथों में कंगन और पैरों में पैंजनियां (पायल) खनक रही हैं, जिनका रज (धूल) पीले वस्त्रों पर सज गया है। घुटनों के बल चलते हुए वे आंगन में खेल रहे हैं, और उनका मुख नवनीत (माखन) से सजा हुआ है। सूरदास कहते हैं कि कान्हा की यह बाल-लीला इतनी विचित्र और मनमोहक है कि उसे वर्णन करने में शब्द कम पड़ जाते हैं। उनके इस बाल-रूप को देखकर सभी मुनियों और योगियों का ध्यान और वैराग्य भूल जाता है।
जीवन एक आंगन है, जहां प्रभु की लीलाएं अनंत रंग बिखेरती हैं। बाल-गोपाल का खेल केवल खेल नहीं, प्रेम और पवित्रता का उत्सव है। उनका हर अंग, हर हाव-भाव, जैसे चंद्रमा की किरणें, मन को आलोकित करता है। घुंघरू की झंकार, माखन से सजा मुख, और धूल में रंगे वस्त्र—यह सब सादगी और दिव्यता का मेल है, जैसे सरलता में ही परम सौंदर्य बसता हो।
यह लीला उस मां के प्रेम को दर्शाती है, जो अपने लाल को निहारकर सुख के सागर में डूब जाती है। यह प्रेम ऐसा है, जो बिना शर्त, बिना अपेक्षा, केवल होने में ही पूर्ण है। गोपाल का यह रूप संसार को सिखाता है कि सच्चा आनंद छोटी-छोटी बातों में है—एक मुस्कान, एक खनक, एक नटखट नजर में।
उनका यह बाल-रूप इतना मनोहर है कि ज्ञानी भी अपना ज्ञान भूल जाते हैं, और योगी अपने तप को। यह प्रेम की शक्ति है, जो हर बंधन, हर विचार को मुक्त कर देती है। जैसे आंगन में खेलता बालक सबका मन चुरा लेता है, वैसे ही प्रभु का यह रूप आत्मा को बांध लेता है, और जीवन को प्रेममय बना देता है।
