Manimay Kanak Nand Ke Aangan Bimb Pakaribe Dhaavat. Kabahun Nirakhee Hari Aapu Chhaanh Kon Kar Son Pakaran Chaahat. Kilaki Hansat Raajati Dvai Dantiyaan Puni-puni Tihin Avagaahat. Kanakabhoomi Par Kar Pag Chhaaya Yah Upama Ik Raajat. Kari-kari Pratipad Pratimani Basudha Kamal Baithakee Saajat. Baaladasha Sukh Nirakhee Jasoda Puni-puni Nand Bulaavati. Anchara Tar Lai Dhaanki Soor Prabhu Jananee Doodh Piyaavati.3.
सूरदास के पद . किलकत कान्ह घुटुरुवनि आवत
किलकत कान्ह घुटुरुवनि आवत शब्दार्थ
किलकत -किलकारी देते हैं। घुटुरुवनि घुटनों के बल चलना या बैठना। बिंब-परछाई, कनक सुवर्ण। प्रतिमन प्रतिमां को। अंचरा-आंचल। मनिमय = मणियों से युक्त। कनक = सोना। पकरिबैं = पकड़ने को। धावत = दौड़ते
हैं। निरखि = देखकर। राजत = सुशोभित होती हैं। दतियाँ = छोटे-छोटे दाँत।
तिहिं = उनको। अवगाहत = पकड़ते हैं। कर-पग = हाथ और पैर।
राजति = शोभित होती है। बसुधा = पृथ्वी। बैठकी =
आसन। साजति = सजाती हैं। अँचरा तर = आँचल के नीचे।
किलकत कान्ह घुटुरुवनि आवत हिंदी मीनिंग
श्रीकृष्ण के सौन्दर्य एवं बाल-लीलाओं का वर्णन करते हुए सूरदास जी (भक्तिकाल की सगुणधारा के कृष्णोपासक कवि हैं ) का कथन है कि बाल कृष्ण (श्री कृष्ण) किलकारी मारते घुटनों के बल चलते आ रहे हैं, कृष्ण के हाथ-पैरों की परछाहीं पड़ रही है। बाल श्री कृष्ण कभी अपने ही प्रतिबिम्ब को देखकर उसे हाथ से पकड़ना चाहते हैं।
श्री कृष्ण किलकारी मारकर हँसते समय उसकी दोनों दँतुलियाँ बहुत शोभा देती हैं, वह
बार-बार उसी(प्रतिबिम्ब) को पकड़ना चाहता है । स्वर्णभूमि पर हाथ और चरणों
की छाया ऐसी पड़ती है कि यह एक उपमा (उसके लिये) शोभा देनेवाली है कि मानो
पृथ्वी (मोहन के) प्रत्येक पद पर प्रत्येक मणि में कमल प्रकट करके उसके
लिये (बैठने को) आसन सजाती है । बालविनोद के आनन्द को देखकर माता यशोदा
बार बार श्रीनन्द जी को वहाँ वहां पर बुलाती हैं जिससे वह भी इस रमणीक दृश्य को देख पाएं।
सूरदास
के स्वामी को माता अपने अञ्चल के नीचे लेकर ढक कर दूध पिलाती हैं । इस पद की भाषा भाषा-सरस मधुर ब्रज है और भाषा शैली मुक्तक है। इस पद का छन्द गेय पद है जिसे गाया जा सकता है। रस-वात्सल्य। शब्दशक्ति-‘करि करि प्रति-पद प्रति-मनि बसुधा, कमल बैठकी साजति’ में लक्षणा।गुण–प्रसाद और माधुर्य। अलंकार---‘किलकत कान्ह’, ‘दै दतियाँ’, ‘प्रतिपद प्रतिमनि’ में अनुप्रास, ‘कमल-बैठकी’ में रूपक, ‘करि-करि’, ‘पुनि-पुनि’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार का उपयोग हुआ है। भावसाम्य-तुलसीदास ने भी भगवान् श्रीराम के बाल रूप की कुछ ऐसी ही झाँकी प्रस्तुत की है