दुनिया के द्वारो से मैं ठोकर खाके भजन
दुनिया के द्वारो से मैं ठोकर खाके भजन
दुनिया के द्वारो से मैं ठोकर खा केश्याम धणी आई हूँ तेरे द्वार,
मेरी सुनी हो गई मांग।
सो गया बगियाँ का माली,
छोड़ चले भरतार,
दुनिया के द्वारो से मैं ठोकर खा के
श्याम धणी आई हूँ तेरे द्वार,
तारा सा टुटा है हुआ रोग न कोई,
चली आई दर तेरे संजोग है कोई,
क्या बिगड़ा ऐसा कर्म मेरी क्यों किस्मत फूटी,
रूठ गये करतार,
दुनिया के द्वारो से मैं ठोकर खा के
श्याम धणी आई हूँ तेरे द्वार,
बनता है कुछ भी न सिवा एक रोने से,
खुशियों से झूमी थी बिन देख गोने के,
कितने ही लुटा सुहाग न छूटी हाथो के,
मेहँदी रह गई मैं मजधार,
दुनिया के द्वारो से मैं ठोकर खा के
श्याम धणी आई हूँ तेरे द्वार,
कहते है तुम सब की बिगड़ी बनाते हो,
दुखियो के दातारि दुखड़े मिटाते हो,
करे आज विनती ये अभागी झोली फैला के,
भीख दया की डाल,
दुनिया के द्वारो से मैं ठोकर खा के
श्याम धणी आई हूँ तेरे द्वार,
विनती सुनी जो न तन मैं भी त्यागु गी,
तेरी चौकठ पे घनश्याम खुद को मिटा दूंगी,
अब हाथो में तेरे डुबोदे या कर दे तू पार,
वर्मा लुटा संसार,
दुनिया के द्वारो से मैं ठोकर खा के
श्याम धणी आई हूँ तेरे द्वार,
सुन्दर भजन में श्रीकृष्णजी, श्याम धणी के प्रति एक दुखी और ठोकर खाए भक्त की मार्मिक पुकार और उनकी शरण में पूर्ण समर्पण का चित्रण है। भक्त दुनिया के द्वारों से ठुकराए जाने, सांसारिक सुखों के छिन जाने और जीवन की मझधार में फँसने की पीड़ा व्यक्त करता है। उसका सुहाग लुट गया, बगिया का माली सो गया, और करतार रूठ गए, फिर भी वह श्याम के द्वार पर आशा लिए आता है। जैसे एक पथिक तूफान में एकमात्र आश्रय की तलाश करता है, वैसे ही भक्त श्याम की कृपा को अपना अंतिम सहारा मानता है। यह उद्गार सिखाता है कि जब संसार साथ छोड़ दे, तब प्रभु का द्वार ही सच्ची शरण देता है।
भक्त श्रीकृष्णजी को दुखियों का दातार मानता है, जो बिगड़ी बात बनाते और दुख मिटाते हैं। वह अपनी झोली फैलाकर दया की भीख माँगता है, यह जानते हुए कि श्याम की कृपा ही उसे मझधार से पार लगाएगी। उसकी विनती इतनी तीव्र है कि वह कहता है, यदि उसकी पुकार न सुनी गई, तो वह स्वयं को उनकी चौखट पर मिटा देगा। जैसे एक दीपक अंतिम ज्योति तक जलता है, वैसे ही भक्त का विश्वास और प्रेम श्याम के प्रति अडिग है। यह भाव दर्शाता है कि सच्ची भक्ति में प्रभु पर पूर्ण भरोसा और समर्पण ही जीवन को सुख और शांति से भर देता है, चाहे संसार कितना ही लुट जाए।
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