हे शंकर भोले भाले भजन

हे शंकर भोले भाले भजन

हे शंकर भोले भाले,
हम को कैसी चिंता जब तुम हो अपने रखवाले,
हे शंकर भोले भाले,


तेरी जटा में गंगा धारा,
सिर पर अर्ज चन्दर उज्यारा,
कानो में कुण्डल की शोभा चरणों में है नन्दी प्यारा ,
नील कंठ तेरे कंठ से लिपटे,
विष धर काले काले,
हे शंकर भोले भाले,

मुख मङ्गल की आबा न्यारी,
गोरी गणपति संग त्रिपुरारी,
हाथो में डमरू तिरशूल है,
हे पशुपति भादम्बरधारी,
तन पर भस्म रमाये फिरते रहते हो मतवाले,
हे शंकर भोले भाले,

नीरा तीर्थ तेरा शिवाला,
जिसके अंदर तेरा उजाला,
जिस दिन मेरा मन जपता है,
हर पल तेरे नाल की माला,
नाथ जगत के बिन मांगे हे सब कुछ देने वाले,
हे शंकर भोले भाले,


सुंदर भजन में शिव के भोलेपन और उनकी असीम कृपा का गुणगान है। यह ऐसा भाव है, जैसे कोई बच्चा अपने पिता को पुकारे, बिना किसी डर के, यह जानकर कि वह हर मुश्किल में साथ है। जब शिव जैसे रखवाले हों, तो मन को चिंता क्यों सताए? यह विश्वास ही जीवन की हर उलझन को आसान बना देता है। जैसे कोई थका हुआ मुसाफिर घर लौटकर सुकून पाता है, वैसे ही शिव की शरण में मन को शांति मिलती है।

शिव का रूप इस भजन में बड़ा मनमोहक उभरता है। उनकी जटाओं में गंगा की धारा, सिर पर चंद्रमा की चमक, कानों में कुंडल और चरणों में नंदी का साथ—यह सब उनकी दिव्यता को दर्शाता है। नीलकंठ का कंठ, जो विष को भी गले लगाता है, हमें सिखाता है कि सच्चा बलिदान वही है, जो दूसरों के लिए सब कुछ सह ले। यह ऐसा प्रेम है, जो बिना शर्त सबको अपनाता है। जैसे कोई मां अपने बच्चे की हर गलती माफ कर देती है, वैसे ही शिव अपने भक्तों को गले लगाते हैं।

शिव का त्रिशूल, डमरू और भस्म से सजा तन उनकी अनोखी छवि बनाता है। गौरी, गणपति और कार्तिकेय के साथ उनका परिवार ऐसा है, जो हर भक्त को अपना-सा लगता है। यह दर्शाता है कि शिव का प्रेम केवल मंदिरों तक नहीं, बल्कि हर दिल तक पहुंचता है। भस्म का लेप और मतवाला स्वभाव बताता है कि सच्ची भक्ति में कोई बनावट नहीं होती। जैसे कोई विद्यार्थी सादगी से अपने काम में जुटा रहता है, वैसे ही शिव की भक्ति में सादगी और समर्पण ही काफी है।


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