श्याम मुझे इक बात बता भजन

श्याम मुझे इक बात बता भजन

(मुखड़ा)
हे श्याम, मुझे इक बात बता,
कब मंत्र मिलन कोई खास बता।
ऐसा जीवन जियूं कलयुग में,
कुछ देर बैठ कर पास बता।

(अंतरा)
जी में आता, जो करता हूं,
पछताता हूं, मैं डरता हूं।
मेरा करना, मेरा डरना,
तुझको आता क्या रास बता।

हे श्याम, मुझे इक बात बता,
कब मंत्र मिलन कोई खास बता।

आहार, भय, निद्रा, कामों में,
खोया रहता हूं आठ पहर।
व्यजनों में खोए इस मन से,
कर सकता हूं क्या आस बता।

हे श्याम, मुझे इक बात बता,
कब मंत्र मिलन कोई खास बता।

जीवन की काली रातों में,
ग़बराऊं, पीठ दिखाऊं मैं।
ये ख़ौफ़ कहीं कुछ खोने का,
मन को करता क्यों निराश बता।

हे श्याम, मुझे इक बात बता,
कब मंत्र मिलन कोई खास बता।

गीता बांची, सब भेद पड़े,
मेरे संसा‌ईं भेद खड़े।
संदेहों को दूर भगाने को,
किसका मैं करूं उपवास बता।

(पुनरावृत्ति)
हे श्याम, मुझे इक बात बता,
कब मंत्र मिलन कोई खास बता।


यह भजन आत्मा की पुकार और श्रीकृष्णजी से जीवन के मार्गदर्शन की याचना को गहराई से प्रकट करता है। भक्त का मन सांसारिक उलझनों में डूबा हुआ है—आहार, भय, निद्रा और भौतिक इच्छाओं में खोया हुआ। वह प्रभु से पूछता है कि इस कलयुग में वह किस प्रकार ऐसा जीवन जिए जहाँ ईश्वर की कृपा बनी रहे।

श्रद्धा की यह गहराई बताती है कि मनुष्य अपने कर्मों में उलझकर पछताता है, डरता है और अनेक संदेहों में भटकता है। इन द्वंद्वों के बीच वह श्रीकृष्णजी से मार्गदर्शन चाहता है—क्या वह सही कर रहा है, क्या उसका डर प्रभु को स्वीकार्य है, और किस प्रकार वह अपने मन को उनकी भक्ति में स्थिर कर सकता है।

भजन में गीता के ज्ञान का उल्लेख आता है—भक्त ने पढ़ा, समझा, लेकिन फिर भी संदेह बना हुआ है। यह अनुभूति दर्शाती है कि केवल ज्ञान प्राप्त करना पर्याप्त नहीं, बल्कि उसे आत्मसात करना और पूर्ण विश्वास के साथ जीवन में उतारना आवश्यक होता है। श्रीकृष्णजी से वह पूछता है कि इन संदेहों को दूर करने के लिए वह क्या करे, किस प्रकार स्वयं को पूर्ण रूप से उनके चरणों में समर्पित करे।


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