मैं तो हूँ सांवरिया तेरे चरणों का पुजारी

मैं तो हु सांवरिया तेरे चरणों का पुजारी

मैं तो हूँ सांवरिया तेरे चरणों का पुजारी
चरणों का पुजारी, तेरे चरणों का पुजारी...

जबसे होश संभाला, मैंने तुमको अपना माना,
तेरी लीला देख देख कर, ये दिल हुआ दीवाना,
मेरे मन को भाए तेरी सूरत जादूगारी,
चरणों का पुजारी, तेरे चरणों का पुजारी...

मेरे खातिर बाबा तूने क्या-क्या नहीं किया है,
खुद मुझको भी पता नहीं है, इतना मुझे दिया है,
कैसे चुकाऊँ बोलो तेरा कर्ज़ा सिर पे भारी,
चरणों का पुजारी, तेरे चरणों का पुजारी...

लोग तेरे शृंगार सजाएँ, तूने मुझे सजाया,
यहाँ वहाँ मुझे लेकर जाए, मेरा मान बढ़ाया,
मालामाल हुआ है जो कल तक था इक भिखारी,
चरणों का पुजारी, तेरे चरणों का पुजारी...

इस भजन में अनन्य भक्ति और श्रीकृष्णजी के प्रति संपूर्ण समर्पण का भाव प्रकट किया गया है। भक्त अपनी प्रत्येक अनुभूति को प्रभु के चरणों में अर्पित करने की आकांक्षा रखता है—जहाँ न कोई स्वार्थ रहता है, न कोई अन्य इच्छा, केवल उनके प्रेम में डूब जाने की प्यास होती है।

श्रीकृष्णजी की लीला ऐसी है कि जो भी उनकी महिमा को अनुभव करता है, वह उनकी भक्ति में पूर्ण रूप से समर्पित हो जाता है। भक्त इस अनुभूति को स्वीकार करता है कि जीवन में जो भी प्राप्त हुआ है, वह केवल प्रभु की कृपा से ही संभव हुआ है। यह भाव विनम्रता और कृतज्ञता को दर्शाता है, जहाँ भक्त स्वयं को प्रभु के ऋण से अभिभूत पाता है।

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