कर चले हम फ़िदा जान-ओ-तन साथियों

कर चले हम फ़िदा जान-ओ-तन साथियों

कर चले हम फ़िदा जान-ओ-तन साथियों
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों
हां हां…
साँस थमती गई नब्ज़ जमती गई
फिर भी बढ़ते कदम को न रुकने दिया
कट गये सर हमारे तो कुछ ग़म नहीं
सर हिमालय का हमने न झुकने दिया
मरते मरते रहा बाँकापन साथियों
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों
कर चले हम फ़िदा…

ज़िंदा रहने के मौसम बहुत हैं मगर
जान देने की रुत रोज़ आती नहीं
हुस्न और इश्क़ दोनों को रुसवा करे
वो जवानी जो खूँ में नहाती नहीं
आज धरती बनी है दुल्हन साथियों
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों
कर चले हम फ़िदा…

राह क़ुर्बानियों की न वीरान हो
तुम सजाते ही रहना नये क़ाफ़िले
फ़तह का जश्न इस जश्न के बाद है
ज़िंदगी मौत से मिल रही है गले
बांधलो अपने सर से कफ़न साथियों,
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों
कर चले हम फ़िदा…

खींच दो अपने खूँ से ज़मीं पर लकीर
इस तरफ़ आने पाये न रावण कोई
तोड़ दो हाथ अगर हाथ उठने लगे
छूने पाये न सीता का दामन कोई
राम भी तुम तुम्हीं लक्ष्मण साथियों,
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों

कर चले हम फ़िदा जान-ओ-तन साथियों
अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों
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सुंदर देशभक्ति गीत में देश के लिए जान और तन कुर्बान करने वाले वीर सैनिकों की अदम्य देशभक्ति और बलिदान की भावना का उद्गार झलकता है, जो हर भारतीय के हृदय में वतन के प्रति प्रेम, गर्व और कृतज्ञता की ज्वाला प्रज्वलित करता है। यह भाव उस सत्य को प्रकट करता है कि शहीदों का बलिदान स्वतंत्रता की अमर गाथा है, जो नई पीढ़ियों को वतन की रक्षा की जिम्मेदारी सौंपता है।

“कर चले हम फिदा जान-ओ-तन साथियों” का उद्घोष उन वीरों की निःस्वार्थ भावना को दर्शाता है, जो साँस थमने और नब्ज जमने के बावजूद अपने कदम नहीं रोकते। यह उद्गार मन को उस साहस से जोड़ता है, जो मृत्यु को गले लगाकर भी हिमालय का सिर न झुकने देता। “कट गए सर हमारे, तो कुछ गम नहीं” का भाव उनकी वीरता और बाँकपन को रेखांकित करता है, जो मरते-मरते भी वतन की शान को अक्षुण्ण रखता है।

जान देने की रुत का दुर्लभ होना और खून में नहाकर जवानी को सार्थक करने का भाव उस सत्य को उजागर करता है कि सच्चा जीवन वही है, जो देश के लिए समर्पित हो। धरती को दुल्हन-सा सजाने का उल्लेख शहीदों के बलिदान से वतन की समृद्धि और सुंदरता को दर्शाता है। जैसे कोई संत अपने जीवन को लोक कल्याण के लिए अर्पित करता है, वैसे ही ये वीर अपने लहू से धरती को आबाद करते हैं।

राह कुर्बानियों को वीरान न होने देने और नए काफिलों को सजाने का आह्वान आने वाली पीढ़ियों को देश की हिफाजत के लिए प्रेरित करता है। यह उद्गार उस विश्वास को प्रकट करता है कि फतह का जश्न तब तक अधूरा है, जब तक कफन बाँधकर वीर वतन की रक्षा करते रहें। राम और लक्ष्मण के प्रतीक के माध्यम से सैनिकों को धर्म और मर्यादा के रक्षक के रूप में चित्रित किया गया है, जो रावण जैसे शत्रुओं को सीता के दामन तक न पहुँचने देते।

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