होवेगी जरूर किरपा मेरे श्याम की

होवेगी जरूर किरपा मेरे श्याम की

(मुखड़ा)
होवेगी ज़रूर कृपा मेरे श्याम की, तुम देखना,
करेंगे खाटू के श्याम, कर्म देखना,
होवेगी ज़रूर कृपा मेरे श्याम की, तुम देखना।।

(अंतरा 1)
जब खाटू श्याम मुझ पर कृपा करेंगे,
खुशियों से बाबा मेरी झोली भरेंगे,
आँखें फिर कभी न मेरी नम देखना,
होवेगी ज़रूर कृपा मेरे श्याम की, तुम देखना।।

(अंतरा 2)
करो ऐतबार, भव से पार होगी नैया,
आएंगे श्यामधनि बन के खिवैया,
वहाँ भी रहेगा मेरा वरम देखना,
होवेगी ज़रूर कृपा मेरे श्याम की, तुम देखना।।

(अंतरा 3)
सुख हो या दुःख हो, मैं हँस के सहूँगा,
सेवक उनका, सदा सेवक रहूँगा,
श्याम चरणों में ये सिर हम देखना,
होवेगी ज़रूर कृपा मेरे श्याम की, तुम देखना।।

(अंतरा 4)
योनि चाहे कोई भी हो, इससे नहीं मतलब,
यही होगा भाग्य मेरा, यही होगी किस्मत,
दासी वो बनाएंगे हर जन्म देखना,
होवेगी ज़रूर कृपा मेरे श्याम की, तुम देखना।।

सुन्दर भजन में श्री श्यामजी की असीम कृपा, भक्ति और जीवन के हर परिस्थिति में उनके सहारे का भाव प्रकट किया गया है। यह भक्त की अटूट आस्था का प्रतीक है, जहाँ वह आश्वस्त है कि श्री श्यामजी की कृपा से उसकी झोली सदैव खुशियों से भरी रहेगी।

भजन का भाव यही दर्शाता है कि जब कोई श्रद्धा से श्रीश्यामजी का नाम लेता है, तब वह भवसागर से पार होने का संबल प्राप्त करता है। उनका आशीर्वाद जीवन के हर उतार-चढ़ाव में भक्त का मार्गदर्शन करता है। जब कोई उन्हें सच्चे भाव से पुकारता है, तब वे संकटों को हरकर उसे शांति और आनंद प्रदान करते हैं।

भक्ति की पराकाष्ठा तब होती है जब भक्त सुख-दुःख की परिस्थितियों में समान भाव रखकर केवल श्यामजी की सेवा में लीन रहता है। उसकी आत्मा किसी भी जन्म में उनकी दासी बनने को तत्पर रहती है, क्योंकि वह जानता है कि उनकी कृपा ही वास्तविक संपदा है। उनका नाम ही जीवन की सच्ची दिशा और दिव्यता का प्रतीक है।

श्रीश्यामजी की कृपा से जीवन के हर कठिनाई दूर हो जाती है। जब भक्त पूर्ण समर्पण से उनकी आराधना करता है, तब उसे आत्मिक संतोष और शांति प्राप्त होती है। यही इस भजन का सार है—श्रद्धा, प्रेम और भक्ति के माध्यम से श्रीश्यामजी की कृपा को अनुभव करना और उनकी कृपा से जीवन को धन्य करना। यही भक्ति का सजीव स्वरूप है, जिसमें भक्त अपनी आत्मा को पूर्ण रूप से श्रीश्यामजी को अर्पित करता है।
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