रात सुहानी दिन वो पावन होगा
रात सुहानी दिन वो पावन होगा
रात सुहानी दिन वो पावन होगा मधुवन जैसा मेरा आँगन होगा
देगा दर्शन कान्हा, मन भावन होगा
बैठा हूँ मैं आश, लगाये कब आये
आये कान्हा,नयनों की प्यास बुझाये
दर्शन नयन सुहावन होगा
मधुवन जैसा मेरा आँगन होगा ...
रात सुहानी दिन वो पावन होगा
मधुवन जैसा मेरा आँगन होगा
देगा दर्शन कान्हा, मन भावन होगा
मुरली की तान सुन,दौड़ी-दौड़ी आये
सुध-बुध खोये, राधा होश गंवाये
रूप कन्हैया का लुभावन होगा
मधुवन जैसा मेरा आँगन होगा...
रात सुहानी दिन वो पावन होगा
मधुवन जैसा मेरा आँगन होगा
देगा दर्शन कान्हा, मन भावन होगा
गोपियाँ नाचे,संग राधा रानी नाचे
रस भरी मुरली,कान्हा की बाजे
'टीकम' मन वृन्दावन होगा
मधुवन जैसा मेरा आँगन होगा...
रात सुहानी दिन वो पावन होगा
मधुवन जैसा मेरा आँगन होगा
देगा दर्शन,कान्हा मन भावन होगा
रात सुहानी दिन वो पावन होगा
देगा दर्शन कान्हा, मन भावन होगा
बैठा हूँ मैं आश, लगाये कब आये
आये कान्हा,नयनों की प्यास बुझाये
दर्शन नयन सुहावन होगा
मधुवन जैसा मेरा आँगन होगा ...
रात सुहानी दिन वो पावन होगा
मधुवन जैसा मेरा आँगन होगा
देगा दर्शन कान्हा, मन भावन होगा
मुरली की तान सुन,दौड़ी-दौड़ी आये
सुध-बुध खोये, राधा होश गंवाये
रूप कन्हैया का लुभावन होगा
मधुवन जैसा मेरा आँगन होगा...
रात सुहानी दिन वो पावन होगा
मधुवन जैसा मेरा आँगन होगा
देगा दर्शन कान्हा, मन भावन होगा
गोपियाँ नाचे,संग राधा रानी नाचे
रस भरी मुरली,कान्हा की बाजे
'टीकम' मन वृन्दावन होगा
मधुवन जैसा मेरा आँगन होगा...
रात सुहानी दिन वो पावन होगा
मधुवन जैसा मेरा आँगन होगा
देगा दर्शन,कान्हा मन भावन होगा
रात सुहानी दिन वो पावन होगा
रात सुहानी दिन वो पावन होगा
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सुन्दर भजन में श्रीकृष्णजी के दिव्य स्वरूप और उनकी साक्षात उपस्थिति की अभिलाषा प्रकट होती है। यह भाव मन को उस आनंद की ओर ले जाता है, जहाँ भक्त की हर सांस प्रभु के दर्शन की प्रतीक्षा में डूब जाती है। जब श्रीकृष्णजी का आगमन होता है, तब समूचे वातावरण में माधुर्य की ध्वनि गुंजायमान हो जाती है, और मन वृंदावन के आनंदमय माधुर्य में खो जाता है।
यह भजन दर्शाता है कि भक्त का हृदय श्रीकृष्णजी के स्वरूप के लिए प्यासा है—उनकी अनुपम छवि में वह दिव्यता है, जो मन को स्थिरता और परम आनंद प्रदान करती है। जब प्रभु की मुरली की तान सुनाई देती है, तब भक्ति में राधारानी और गोपियाँ आनंद से झूम उठती हैं। यह उनकी भक्ति की पराकाष्ठा है—जहाँ प्रेम और भक्ति का अद्भुत संगम होता है।
यह भाव भी उजागर होता है कि श्रीकृष्णजी की लीला केवल एक कथा नहीं, बल्कि भक्तों के हृदय का सत्य है। उनकी महिमा में गोपियाँ नृत्य करती हैं, मन वृंदावन में रम जाता है, और संसार के सारे मोह समाप्त हो जाते हैं। यह भजन आत्मा की उस शुद्ध अवस्था का संकेत करता है, जहाँ केवल प्रेम, भक्ति और श्रीकृष्णजी की माधुर्यता बनी रहती है।
इस भजन का सार यही है—श्रीकृष्णजी का नाम ही वह अमृत है, जिससे जीवन में सच्चा आनंद प्राप्त होता है। जब उनकी कृपा बरसती है, तब हर दिशा मधुवन की भांति पावन बन जाती है, और मन सदा उनके प्रेम में रम जाता है।
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