शरण में आये हैं हम तुम्हारी भजन

शरण में आये हैं हम तुम्हारी भजन

शरण में आये हैं हम तुम्हारी, दया करो हे दयालु भगवन,
सम्हालो बिगड़ी दशा हमारी, दया करो हे दयालु भगवन,

न हम में बल है, न हम में शक्ति,
न हम में साधन, न हम में भक्ति,
तुम्हारे दर के हैं हम भिखारी, दया करो हे दयालु भगवन,
शरण में आये हैं हम तुम्हारी, दया करो हे दयालु भगवन,

प्रदान कर दो महान शक्ति, भरो हमारे में ज्ञान भक्ति,
तभी कहाओगे ताप हारी, दया करो हे दयालु भगवन,
शरण में आये हैं हम तुम्हारी, दया करो हे दयालु भगवन,

जो तुम पिता हो, तो हम हैं बालक,
जो तुम हो स्वामी, तो हम हैं सेवक,
जो तुम हो ठाकुर, तो हम पुजारी,
दया करो हे दयालु भगवन,
शरण में आये हैं हम तुम्हारी, दया करो हे दयालु भगवन,

भले जो हैं हम, तो हैं तुम्हारे,
बुरे जो हैं हम, तो हैं तुम्हारे,
तुम्हारे हो कर भी हम दुखारी,
दया करो हे दयालु भगवन,
शरण में आये हैं हम तुम्हारी, दया करो हे दयालु भगवन,

शरण में आये हैं हम तुम्हारी, दया करो हे दयालु भगवन,
सम्हालो बिगड़ी दशा हमारी, दया करो हे दयालु भगवन,


सुंदर भजन में शरणागति और परमात्मा के करुणामय स्वरूप को प्रदर्शित किया गया है। जब भक्त अपने समस्त अहंकार, शक्ति और सांसारिक साधनों को छोड़कर भगवान की शरण में आता है, तब उसकी समस्त चिंता समाप्त हो जाती है, क्योंकि वह स्वयं को प्रभु की कृपा पर समर्पित कर देता है।

श्रद्धा की यह गहराई बताती है कि ईश्वर के दर पर कोई भी भेदभाव नहीं होता—चाहे व्यक्ति कितना भी निर्बल, अशक्त या भटकाव में हो, वह प्रभु की करुणा से अपना मार्ग प्राप्त कर सकता है। जब भक्त अपने स्वामी को पुकारता है, तब ईश्वर उसकी पुकार को अनसुना नहीं करते, बल्कि उसे अपनी कृपा से आच्छादित कर देते हैं।

शरणागत होने का यह भाव केवल प्रार्थना नहीं, बल्कि आत्मा की वह विनती है, जो ईश्वर से ज्ञान, भक्ति और शक्ति की याचना करता है। जब मनुष्य यह स्वीकार कर लेता है कि प्रभु ही उसके जीवन के आधार हैं, तब वह सांसारिक मोह से मुक्त होकर केवल उनकी कृपा का पात्र बन जाता है। 

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