सावन फुहार कह रही है

सावन फुहार कह रही है

कावड़ उठा लो शिव पे चडालो,
मन चाहा वर इनसे पा लो सावन फुहार कह रही है,
गंगा की धार बह रही है,

शिव वरदानी भस्मासुर को वर निराला दे बैठे,
भस्म हुआ अपने हाथो से मोहनी रूप प्रभु धारे,
बाबा मेरे भोले बाले,
तू वी आ झोली फैला ले सावन फुआर कह रही है,
गंगा की धार बह रही है,

ओ ब्रह्म कमण्डल निकली गंगा शिव जटा में लिपटाये,
भागी रथ के पुरखे तारे एक लट जो भिखराये,
डमरू वाले खेल निराले तू भी इनका ध्यान लगा ले,
सावन फुआर कह रही है गंगा की धार बह रही यही,

देवो ने पेय अमृत ये पे गये विष के प्याले,
नील कंठ कहलाने वाले गले में देखो विष धारे,
बाबा के है खेल निराले शीश चरणों में झुका ले,
श्याम ने सुणा दे तेरे मन की बाता,

सुंदर भजन में सावन की फुहार और गंगा की धार के बीच शिव की महिमा का गुणगान है, जो मन को भक्ति के रंग में डुबो देता है। सावन का मौसम शिव के प्रति प्रेम और श्रद्धा को जगाता है, जैसे हर बूँद भोलेनाथ का आह्वान कर रही हो। कावड़ उठाने और शिव पर चढ़ाने का भाव उस समर्पण को दर्शाता है, जो भक्त अपने मन की हर इच्छा को शिव के चरणों में अर्पित करता है। यह विश्वास है कि शिव की कृपा से हर मनोकामना पूरी हो सकती है।

भस्मासुर को वर देने की बात शिव की वरदानी प्रकृति को उजागर करती है। लेकिन मोहिनी रूप धारण कर शिव जिस तरह भस्मासुर को भस्म करते हैं, वह उनके अनोखे खेल को दिखाता है। यह भाव मन को सिखाता है कि शिव की माया अपार है, और उनकी कृपा से हर संकट टल सकता है। भक्त को बस अपनी झोली फैलानी है, और शिव उसमें प्रेम व आशीर्वाद भर देते हैं। जैसे कोई बच्चा माँ के पास अपनी छोटी-सी इच्छा लेकर जाता है, वैसे ही भक्त शिव के सामने निश्छल मन से खड़ा होता है।

गंगा का शिव की जटाओं में लिपटना और फिर एक लट से संसार को तारना, शिव की उस शक्ति को दर्शाता है, जो छोटे-से कार्य से भी बड़े चमत्कार कर देती है। गंगा का वेग और पवित्रता भक्त के मन को शुद्ध करने की प्रेरणा देती है। डमरू की ध्वनि और शिव का ध्यान लगाने का आह्वान मन को संसार की भागदौड़ से हटाकर भक्ति के मार्ग पर ले जाता है। यह भाव ऐसा है, जैसे कोई थका हुआ पथिक ठंडी छाँव में सुकून पाता है।
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