प्रातः समरणीय मूल मंत्र Morning Mantras Hindi Lyrics

प्रातः समरणीय मूल मंत्र Morning Mantras Hindi Lyrics

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हर सुबह जब हम सोकर उठते हैं, तो यह एक नई शुरुआत होती है, प्रत्येक सुबह दिन की शुरुआत होती है जो इश्वर के द्वारा दिया गया एक उपहार है। यह एक ऐसा समय है जब हम अपने जीवन को नए सिरे से शुरू करते हैं और इश्वर का धन्यवाद देते हैं। सुबह के समय वातावरण बहुत ही सुंदर होता है। वायु शीतल, आकाश स्वच्छ और सूर्य निर्मल होता है। प्रकृति हरी भरी और ओस युक्त होती है। इस दौरान जब हम जागरण कर लेते हैं, तो हमें तुरंत ही इस नए दिन के लिए ईश्वर को धन्यवाद करना चाहिए।

हमारे ऋषियों मनीषियों ने मनुष्य और प्रकृति को ही सबसे उच्च माना है इसलिए ही हमें सिखाया जाता है की हम उनका धन्यवाद ज्ञापित करें । उन्होंने कहा है कि ईश्वर का निवास हर कण और प्राण में है। यही वजह है कि उन्होंने हमें प्रातः स्मरण मंत्र दिया है। प्रातः स्मरण मंत्र हमारे भीतर बसे ईश्वर के दर्शन कराता है। यह हमें एक नई ऊर्जा और प्रेरणा देता है।
स्मरण योग्य शुभ सुंदर मंत्र संग्रह
प्रात: कर-दर्शनम
कराग्रे वसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती।
करमूले तू गोविन्दः प्रभाते करदर्शनम्॥

पृथ्वी क्षमा प्रार्थना
समुद्र वसने देवी पर्वत स्तन मंडिते।
विष्णु पत्नी नमस्तुभ्यं पाद स्पर्शं क्षमश्वमेव॥

त्रिदेवों के साथ नवग्रह स्मरण
ब्रह्मा मुरारिस्त्रिपुरान्तकारी भानु: शशी भूमिसुतो बुधश्च।
गुरुश्च शुक्र: शनिराहुकेतव: कुर्वन्तु सर्वे मम सुप्रभातम्॥

स्नान मन्त्र
गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वती।
नर्मदे सिन्धु कावेरी जले अस्मिन् सन्निधिम् कुरु॥

सूर्यनमस्कार
ॐ सूर्य आत्मा जगतस्तस्युषश्च
आदित्यस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने दिने।
दीर्घमायुर्बलं वीर्यं व्याधि शोक विनाशनम्
सूर्य पादोदकं तीर्थ जठरे धारयाम्यहम्॥
ॐ मित्राय नम:
ॐ रवये नम:
ॐ सूर्याय नम:
ॐ भानवे नम:
ॐ खगाय नम:
ॐ पूष्णे नम:
ॐ हिरण्यगर्भाय नम:
ॐ मरीचये नम:
ॐ आदित्याय नम:
ॐ सवित्रे नम:
ॐ अर्काय नम:
ॐ भास्कराय नम:
ॐ श्री सवितृ सूर्यनारायणाय नम:
आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीदमम् भास्कर।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते॥

दीप दर्शन
शुभं करोति कल्याणम् आरोग्यम् धनसंपदा।
शत्रुबुद्धिविनाशाय दीपकाय नमोऽस्तु ते॥
दीपो ज्योति परं ब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्दनः।
दीपो हरतु मे पापं संध्यादीप नमोऽस्तु ते॥

गणपति स्तोत्र
गणपति: विघ्नराजो लम्बतुन्ड़ो गजानन:।
द्वै मातुरश्च हेरम्ब एकदंतो गणाधिप:॥
विनायक: चारूकर्ण: पशुपालो भवात्मज:।
द्वादश एतानि नामानि प्रात: उत्थाय य: पठेत्॥
विश्वम तस्य भवेद् वश्यम् न च विघ्नम् भवेत् क्वचित्।
विघ्नेश्वराय वरदाय शुभप्रियाय।
लम्बोदराय विकटाय गजाननाय॥
नागाननाय श्रुतियज्ञविभूषिताय।
गौरीसुताय गणनाथ नमो नमस्ते॥
शुक्लाम्बरधरं देवं शशिवर्णं चतुर्भुजं।
प्रसन्नवदनं ध्यायेतसर्वविघ्नोपशान्तये॥

आदिशक्ति वंदना
सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥

शिव स्तुति
कर्पूर गौरम करुणावतारं,
संसार सारं भुजगेन्द्र हारं।
सदा वसंतं हृदयार विन्दे,
भवं भवानी सहितं नमामि॥

विष्णु स्तुति
शान्ताकारं भुजगशयनं पद्मनाभं सुरेशं
विश्वाधारं गगनसदृशं मेघवर्ण शुभाङ्गम्।
लक्ष्मीकान्तं कमलनयनं योगिभिर्ध्यानगम्यम्
वन्दे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्॥

श्री कृष्ण स्तुति
कस्तुरी तिलकम ललाटपटले, वक्षस्थले कौस्तुभम।
नासाग्रे वरमौक्तिकम करतले, वेणु करे कंकणम॥
सर्वांगे हरिचन्दनम सुललितम, कंठे च मुक्तावलि।
गोपस्त्री परिवेश्तिथो विजयते, गोपाल चूडामणी॥
मूकं करोति वाचालं पंगुं लंघयते गिरिम्‌।
यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्द माधवम्‌॥

श्रीराम वंदना
लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये॥

श्रीरामाष्टक
हे रामा पुरुषोत्तमा नरहरे नारायणा केशवा।
गोविन्दा गरुड़ध्वजा गुणनिधे दामोदरा माधवा॥
हे कृष्ण कमलापते यदुपते सीतापते श्रीपते।
बैकुण्ठाधिपते चराचरपते लक्ष्मीपते पाहिमाम्॥

एक श्लोकी रामायण
आदौ रामतपोवनादि गमनं हत्वा मृगं कांचनम्।
वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीवसम्भाषणम्॥
बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं लंकापुरीदाहनम्।
पश्चाद्रावण कुम्भकर्णहननं एतद्घि श्री रामायणम्॥

सरस्वती वंदना
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वींणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपदमासना॥
या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा माम पातु सरस्वती भगवती
निःशेषजाड्याऽपहा॥

हनुमान वंदना
अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहम्‌।
दनुजवनकृषानुम् ज्ञानिनांग्रगणयम्‌।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशम्‌।
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥
मनोजवं मारुततुल्यवेगम जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं।
वातात्मजं वानरयूथमुख्यं श्रीरामदूतं शरणम् प्रपद्ये॥

स्वस्ति-वाचन
ॐ स्वस्ति न इंद्रो वृद्धश्रवाः
स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः।
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्ट्टनेमिः
स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु॥

शांति पाठ
ऊँ पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णात्‌ पूर्णमुदच्यते।
पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते॥
ॐ द्यौ: शान्तिरन्तरिक्ष (गुँ) शान्ति:,
पृथिवी शान्तिराप: शान्तिरोषधय: शान्ति:।
वनस्पतय: शान्तिर्विश्वे देवा: शान्तिर्ब्रह्म शान्ति:,
सर्व (गुँ) शान्ति:, शान्तिरेव शान्ति:, सा मा शान्तिरेधि॥
॥ॐ शान्ति: शान्ति: शान्ति:॥


कराग्रे वसते लक्ष्मी:, करमध्ये सरस्वती ।
कर मूले तु गोविन्द:, प्रभाते करदर्शनम ॥१॥

हिंदी अर्थ / मीनिंग : इस श्लोक का अर्थ है कि सुबह उठने के बाद सबसे पहले अपने हाथों का दर्शन करना चाहिए। हाथों में रचित विधाता की लकीरों का दर्शन करना चाहिए। और इन मंत्रों का श्रवण या स्वयं इनका पाठ करना चाहिए।

हाथ के शीर्ष पर हथेली पर देवी लक्ष्मी का निवास है और हाथ के मध्य में सरस्वती का निवास है। हाथ के आधार पर श्री गोविन्द का निवास है। इसीलिए व्यक्ति को सुबह के समय अपने हाथों को देखना चाहिए। एवं उक्त सभी देवी देवताओं का ध्यान पूर्वक मनन करना चाहिए।
 
समुद्रवसने देवि ! पर्वतस्तनमंड्ले ।
विष्णुपत्नि! नमस्तुभ्यं पाद्स्पर्श्म क्षमस्वे ॥२॥

अर्थ:  आपने सही समझा है। इस श्लोक का अर्थ है कि भूमि पर चरण रखने के समय माँ पृथ्वी से एक क्षमा प्रार्थना करनी चाहिए। पृथ्वी माँ का स्पर्श करके अपने माथे पर लगाना चाहिए। और इन मंत्रों का ध्यानपूर्वक पढ़ना या सुनना चाहिए।

इस श्लोक में, प्रार्थनाकर्ता माँ पृथ्वी से क्षमा मांग रहा है कि वह अपने चरणों से उसे स्पर्श करने जा रहा है। वह माँ पृथ्वी को बता रहा है कि वह उसे जानता है कि वह समुद्र में निवास करती है, पर्वतों को धारण करती है और संसार को पोषित करती है। वह उसे बता रहा है कि वह भगवान श्री विष्णु की पत्नी माता लक्ष्मी जी का भी स्वरूप है।

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1 टिप्पणी

  1. Thanks for this valuable and helpful support