हेरी मा नन्द को गुमानी लिरिक्स
हेरी मा नन्द को गुमानी म्हाँरे मनड़े बस्यो।।टेक।।
गहे द्रुमडार कदम को ठाड़ो, मृदु मुसकाय म्हारी ओर हँस्यो।
पीताम्बर कट काछनी, काले रतन जटित माथे मुकुट कस्यो।
मीराँ के प्रभु गिरधरनागर, निरख बदन म्हारो मनड़ो फँस्यो।।
(गुमानी=गर्वीला,घमंडी, मनड़े=मन में, द्रुम=वृक्ष,बदन=मुख)
मीराबाई अपनी सखी से कहती हैं कि उनका प्रियतम (भगवान श्रीकृष्ण) उनके पास नहीं आए। वह पूछती हैं कि संतों के साथ क्या किया जाए और किस मार्ग पर जाएं, क्योंकि उनका प्रियतम उनके पास नहीं है।
वह सोचती हैं कि अब कहां जाएं, क्योंकि उनके प्रियतम के बिना उनका मन व्याकुल है। मीराबाई कहती हैं कि वह भगवान श्रीकृष्ण की चरणों में अपने मन को लगाती हैं, क्योंकि वह उनके दर्शन की प्यास से व्याकुल हैं।
यह भजन मीराबाई की भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अटूट भक्ति, उनके बिना जीवन की असहनीयता और उनके चरणों में मन को समर्पित करने की भावना को प्रकट करता है।
meera Bai Bhajan Lyrics Hindi