मेरो मन राम ही राम रटे

मेरो मन राम ही राम रटे

मेरो मन राम-हि-राम रटै
मेरो मन राम-हि-राम रटै।
राम-नाम जप लीजै प्राणी! कोटिक पाप कटै।
जनम-जनम के खत जु पुराने, नामहि लेत फटै।
कनक-कटोरै इमरत भरियो, नामहि लेत नटै।
मीरा के प्रभु हरि अविनासी तन-मन ताहि पटै।



हृदय में राम-नाम का जाप ही जीवन का सच्चा धन है। यह ऐसा अमृत है, जो अनगिनत पापों को क्षण में नष्ट कर देता है। जैसे सूरज की किरणें अंधेरे को मिटाती हैं, वैसे ही राम-नाम जन्म-जन्मांतर के कर्मों के बंधन काट देता है। यह नाम इतना शक्तिशाली है कि सोने का कलश भी इसके प्रभाव से नश्वर हो जाए, पर यह स्वयं कभी नष्ट नहीं होता।

मन और तन जब इस नाम में डूब जाते हैं, तो सारी माया फीकी पड़ जाती है। मीरा का यही भाव है कि अविनाशी हरि के प्रति पूर्ण समर्पण से ही आत्मा को परम सुख और शांति मिलती है। राम-नाम का स्मरण वह मार्ग है, जो जीव को संसार के दुखों से मुक्त कर, प्रभु के चरणों में ले जाता है।
 
नाम-जप वह अमृत है, जो जन्म-जन्मांतर के बंधनों को काट सकता है। राम-नाम का स्मरण मात्र ही संचित पापों को मिटा देने वाली शक्ति रखता है। जब आत्मा इस दिव्य धारा में प्रवेश करती है, तो सारे पुराने विकार जैसे स्वयं ही क्षीण हो जाते हैं।

मनुष्य जीवन अनमोल अवसर है, लेकिन संसार की आसक्ति उसे भ्रमित कर देती है। सोने के कटोरे में अमृत भरा हो, परंतु यदि व्यक्ति उसे स्वीकार न करे, तो वह उसके लिए व्यर्थ हो जाता है। ऐसे ही, प्रभु का नाम सर्वत्र उपलब्ध है, परंतु जब तक आत्मा उसे ग्रहण नहीं करती, तब तक वह उसके जीवन में कोई परिवर्तन नहीं ला सकता।

वह परमात्मा अविनाशी हैं—उनकी कृपा से ही तन और मन विश्राम पाते हैं। जब यह सच्ची भक्ति उत्पन्न हो जाती है, तब कोई विकार शेष नहीं रहता, कोई द्वंद्व नहीं बचता। केवल एक ही अनुभूति रहती है—शाश्वत प्रेम और परम शांति, जो ईश्वर के नाम में विलीन होकर मिलती है। यही जीवन की सार्थकता है, यही मोक्ष की साधना है।
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