कोई कछु कहो रे रंग लाग्यो मीरा बाई पदावली
कोई कछु कहो रे रंग लाग्यो
कोई कछु कहो रे रंग लाग्यो, रंग लाग्यो भ्रम भाग्यो ।।टेक।।
लोक कहैं मीराँ भई बाबरी भ्रम दूनी ने खाग्यो।
कोई कहै रंग लाग्यो।
मीराँ साधाँ में यूँ रम बैठी, ज्यूँ गुदड़ी में तागो।
सोने में सुहागो।
मीराँ लूती अपने भवन में, सतगुरू आप जगाग्यो।
ज्ञानी गुरू आप जगाग्यो।। (रंग=प्रेम, भ्रम=अज्ञान, दूनी=दुनिया, सूती=सोती थी)
"कोई कछु कहो रे रंग लाग्यो" मीरा बाई का एक प्रसिद्ध पद है, जिसमें वे अपने कृष्ण प्रेम और भक्ति की गहराई को व्यक्त करती हैं। इस पद में मीरा बाई कहती हैं कि अब उन्हें कोई भी भ्रम नहीं है, क्योंकि भगवान के प्रेम ने उनके जीवन को रंगीन बना दिया है। वे कहती हैं कि जैसे सूती कपड़े में रंग लगने से उसका रंग बदल जाता है, वैसे ही उनके जीवन में भगवान के प्रेम ने सब कुछ बदल दिया है। वे अपने घर में भगवान के प्रेम में लीन होकर, गुरु की कृपा से अपने जीवन को संवार रही हैं। इस प्रकार, मीरा बाई अपने भक्ति मार्ग में भगवान के प्रेम और गुरु की कृपा से अपने जीवन को रंगीन और समृद्ध बना रही हैं।
प्रभु का प्रेम ऐसा रंग है, जो मन को रंग देता है और सारे भ्रमों को मिटा देता है। यह रंग इतना गहरा है कि दुनिया की बातें—जैसे मीरा को बावरी कहना—फीकी पड़ जाती हैं। सच्चाई यह है कि यह प्रेम अज्ञान की धुंध को चीरकर आत्मा को जागृत करता है।
मीरा साधुओं की संगति में ऐसी रमी, जैसे सादी गुदड़ी में अनमोल धागा चमकता हो। यह भक्ति का सुहाग है, जो जीवन को सोने-सा निखार देता है। सतगुरु की कृपा से वह अपने भीतर सोई चेतना को जगा पाई, मानो कोई दीया अंधेरे में प्रज्वलित हो उठे। यह प्रेम और ज्ञान का संगम है, जो मन को बंधनों से मुक्त कर प्रभु के रंग में डुबो देता है।