मीरा बाई भजन : मीरा बाई के इस भजन में वर्णन है की हे दयालु (भगवान् श्री कृष्ण) आप ही श्रेष्ठ दयालु हैं (आप मुझ पर दया कीजिये) मेरी (म्हारी) अर्जी (विनय, निवेदन) को आप ही सुनों, आप इस पर गौर करो। मैं (मीरा बाई/जीवात्मा ) भव् सागर में बहती ही जा रही हूँ। भाव है की इस संसार में ठोकरें खा रही हूँ, व्यर्थ में विचरण है। इससे यदि आप निकालो (काढो) तो आपकी मर्जी है। इस (ईण) संसार में कोई सगा नहीं है (सभी स्वार्थ के बंधन में बंधे हुए हैं ) एक सच्चा सगा रघुबर (इश्वर ) आप ही हैं। आप ही मेरी अर्जी को सुनों। माता पिता और कुटुंब कबीला (सभी सांसारिक सबंध ) सब मतलब के हैं और गर्जी (गरज /स्वार्थ जनित व्यवहार करने वाले) हैं आप ही मेरी विनादी को सुनों, हे दयालु। मीरा बाई की अर्जी है की मुझे आप चरण लगाओ तो ये आपकी मर्जी है। इस भजन में जीवात्मा का पूर्ण समर्पण है और वह अपने ईश्वर से उसकी मर्जी पर ही स्वंय को स्वीकार करने का विनय करती है।