पिया अब घर आज्यो मेरे

पिया अब घर आज्यो मेरे

पिया अब घर आज्यो मेरे
पिया अब घर आज्यो मेरे, तुम मोरे हूँ तोरे।।टेक।।
मैं जन तेरा पंथ निहारूँ, मारग चितवत तोर।
अवध बदीती अजहुँ न आये, दूतियन सूँ नेह जोरे।
मीराँ कहे प्रभु कबरे मिलोगे, दरसन बिन दिन दोरे।।

(चितवन=देखना, अवध=अवधि, बदीती=निश्चित की थी, दुतियन सूं=दूसरों से, नेह=स्नेह, दोरे=कठिन)
 
प्रियतम के घर आने की पुकार वह गहरी तड़प है, जो मन को उनके प्रेम में बाँधे रखती है। यह विश्वास कि मैं तुम्हारी हूँ और तुम मेरे, वह अटूट बंधन है, जो आत्मा को प्रभु से जोड़ता है। हर पल उनके मार्ग को निहारना, उस भक्त की प्रतीक्षा है, जो उनकी एक झलक के लिए बेकरार है।

वादे की अवधि बीत गई, पर प्रियतम का आगमन नहीं हुआ। दूसरों से स्नेह जोड़ने की कोशिश व्यर्थ है, क्योंकि मन केवल प्रभु में रमता है। उनके दर्शन के बिना दिन कठिन और भारी लगते हैं, जैसे सूरज के बिना कमल मुरझा जाता है।

कब मिलन होगा, यह सवाल उस आत्मा का है, जो प्रभु की कृपा का भूखा है। मन को उनके चरणों में अर्पित करो, क्योंकि उनकी शरण ही वह ठिकाना है, जो हर दुख को मिटाकर सच्चा सुख देता है।
 
 आतुर थई छुं सुख जोवांने घेर आवो नंद लालारे॥ध्रु०॥
गौतणां मीस करी गयाछो गोकुळ आवो मारा बालारे॥१॥
मासीरे मारीने गुणका तारी टेव तमारी ऐसी छोगळारे॥२॥
कंस मारी मातपिता उगार्या घणा कपटी नथी भोळारे॥३॥
मीरा कहे प्रभू गिरिधर नागर गुण घणाज लागे प्यारारे॥४॥

राम मिलण के काज सखी, मेरे आरति उर में जागी री।
तड़पत-तड़पत कल न परत है, बिरहबाण उर लागी री।
निसदिन पंथ निहारूँ पिवको, पलक न पल भर लागी री।
पीव-पीव मैं रटूँ रात-दिन, दूजी सुध-बुध भागी री।
बिरह भुजंग मेरो डस्यो कलेजो, लहर हलाहल जागी री।
मेरी आरति मेटि गोसाईं, आय मिलौ मोहि सागी री।
मीरा ब्याकुल अति उकलाणी, पिया की उमंग अति लागी री। 
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