पिया अब घर आज्यो मेरे
पिया अब घर आज्यो मेरे, तुम मोरे हूँ तोरे।।टेक।।
मैं जन तेरा पंथ निहारूँ, मारग चितवत तोर।
अवध बदीती अजहुँ न आये, दूतियन सूँ नेह जोरे।
मीराँ कहे प्रभु कबरे मिलोगे, दरसन बिन दिन दोरे।।
(चितवन=देखना, अवध=अवधि, बदीती=निश्चित की थी, दुतियन सूं=दूसरों से, नेह=स्नेह, दोरे=कठिन)
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आतुर थई छुं सुख जोवांने घेर आवो नंद लालारे॥ध्रु०॥
गौतणां मीस करी गयाछो गोकुळ आवो मारा बालारे॥१॥
मासीरे मारीने गुणका तारी टेव तमारी ऐसी छोगळारे॥२॥
कंस मारी मातपिता उगार्या घणा कपटी नथी भोळारे॥३॥
मीरा कहे प्रभू गिरिधर नागर गुण घणाज लागे प्यारारे॥४॥
राम मिलण के काज सखी, मेरे आरति उर में जागी री।
तड़पत-तड़पत कल न परत है, बिरहबाण उर लागी री।
निसदिन पंथ निहारूँ पिवको, पलक न पल भर लागी री।
पीव-पीव मैं रटूँ रात-दिन, दूजी सुध-बुध भागी री।
बिरह भुजंग मेरो डस्यो कलेजो, लहर हलाहल जागी री।
मेरी आरति मेटि गोसाईं, आय मिलौ मोहि सागी री।
मीरा ब्याकुल अति उकलाणी, पिया की उमंग अति लागी री।