पिया इतनी बिनती सुनो मोरी

पिया इतनी बिनती सुनो मोरी

 
पिया इतनी बिनती सुनो मोरी

पिया इतनी बिनती सुनो मोरी
पिया इतनी बिनती सुनो मोरी, कोई कहियो रे जाय ।।टेक।।
और सूं रस बतियाँ करत हो, हम से रहै चित्त चोरी।
तुम बिन मेरे और न कोई, में सरनागत तोरी।
आवन कह गए अजहूँ न आये, दिवस रहे अब थोरी।
मीराँ के प्रभु कब रे मिलोगे, अरज करूँ कर जोरी।। 

प्रियतम के बिना मन की व्यथा उस पुकार में है, जो बार-बार उनकी शरण माँगती है। कोई उनके पास जाकर यह बिनती पहुँचाए, कि मन केवल उसी के लिए तड़पता है। संसार की बातें, औरों की रस भरी बतियाँ, सब चित्त को चुराने वाली हैं, पर सच्चा ठिकाना तो प्रभु की शरण ही है।

उनके आने का वादा मन में बस्ता है, पर दिन बीतते जाते हैं, और प्रतीक्षा की घड़ियाँ थोड़ी होती जाती हैं। यह तड़प उस आत्मा की है, जो प्रभु के बिना अधूरी है, जैसे नदी बिना सागर के सूख जाती है। उनके बिना कोई और सहारा नहीं, केवल उनकी शरण ही जीवन का आधार है।

कर जोड़कर यह अर्ज करना, कि कब मिलन होगा, वह प्रेम है, जो हर सांस को प्रभु के लिए अर्पित करता है। मन को उनके चरणों में रखो, क्योंकि उनकी कृपा ही वह सुख है, जो हर व्यथा को मिटाकर आत्मा को पूर्ण करता है।

Meera bhajan piya itni binti suno

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