कुण बांचे पाती मीरा बाई पदावली

कुण बांचे पाती मीरा बाई पदावली

कुण बांचे पाती
कुण बांचे पाती, बिना प्रभु कुण बांचे पाती।
कागद ले ऊधोजी आयो, कहां रह्या साथी।
आवत जावत पांव घिस्या रे (वाला) अंखिया भई राती॥
कागद ले राधा वांचण बैठी, (वाला) भर आई छाती।
नैण नीरज में अम्ब बहे रे (बाला) गंगा बहि जाती॥
पाना ज्यूं पीली पड़ी रे (वाला) धान नहीं खाती।
हरि बिन जिवणो यूं जलै रे (वाला) ज्यूं दीपक संग बाती॥
मने भरोसो रामको रे (वाला) डूब तिर्‌यो हाथी।
दासि मीरा लाल गिरधर, सांकडारो साथी॥ 

(कुण=कौन, पाती=पत्र, साथी=कृष्ण, घिस्यारे=घिश गये, बाला=प्रियतम, राती=लाल, भर आई छाती= हृदय भर आया, नीरज=कमल, अम्ब=पानी, पाना= पत्ता, जिवड़ो=हृदय, डूबी तर्यो हाथी=डूबते हुए हाथी को उबारा, साँकड़ारो=संकट में, साथी=सहायक)
 
मीरा बाई के इस पद में, वे अपने प्रियतम श्रीकृष्ण से संदेश भेजने की बात करती हैं। वे कहती हैं कि कोई उनके प्रभु को उनके आने की सूचना दे, क्योंकि वे स्वयं नहीं आते और न ही कोई पत्र भेजते हैं। उनकी आँखें प्रियतम की राह देखते-देखते थक गई हैं, जैसे सावन में नदियाँ बहती हैं। मीरा कहती हैं कि उनके पास कोई उपाय नहीं बचा; पंख नहीं हैं कि उड़कर उनके पास पहुँच जाएँ। अंत में, वे अपने प्रभु गिरधर नागर से विनती करती हैं कि वे कब मिलेंगे, क्योंकि वे उनकी दासी बन चुकी हैं।

इस पद में मीरा बाई की अपने आराध्य के प्रति गहरी भक्ति और विरह की तीव्रता प्रकट होती है। वे अपने प्रभु के बिना स्वयं को असहाय महसूस करती हैं और उनके दर्शन की अभिलाषा में व्याकुल हैं।
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