कुबजा ने जादु डारा मीरा बाई पदावली
कुबजा ने जादु डारा
कुबजा ने जादु डारा।
मोहे लीयो शाम हमारारे॥
दिन नहीं चैन रैन नहीं निद्रा।
तलपतरे जीव हमरारे॥ १॥
निरमल नीर जमुनाजीको छांड्यो।
जाय पिवे जल खारारे॥ २॥
इत गोकुल उत मथुरा नगरी।
छोड्यायो पिहु प्यारा॥ ३॥
मोर मुगुट पितांबर शोभे।
जीवन प्रान हमारा॥ ४॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर।
बिरह समुदर सारा॥
कुबजा ने जादू डारारे॥५॥
मीरा बाई के पद "कुबजा ने जादू डारा" में वे भगवान श्रीकृष्ण के प्रति अपनी गहन भक्ति और विरह वेदना को प्रकट करती हैं। वे कहती हैं कि कुब्जा के जादू ने उनके प्रियतम श्याम को उनसे दूर कर दिया है, जिससे उनके जीवन में दिन में चैन और रात में नींद नहीं है। वे गोकुल और मथुरा के बीच भटकती हैं, अपने प्रियतम की खोज में, और उनकी अनुपस्थिति में खारे जल का सेवन करती हैं, जबकि यमुना का निर्मल जल छोड़ देती हैं। मीरा बाई अपने प्रभु गिरधर नागर के चरणों में चित्त लगाकर कहती हैं कि वे विरह के समुद्र में डूबी हुई हैं, और उनके जीवन का एकमात्र सहारा उनके प्रभु ही हैं।