कीसनजी नहीं कंसन घर जावो मीरा बाई पदावली
कीसनजी नहीं कंसन घर जावो
कीसनजी नहीं कंसन घर जावो। राणाजी मारो नही॥टेक॥
तुम नारी अहल्या तारी। कुंटण कीर उद्धारो॥१॥
कुबेरके द्वार बालद लायो। नरसिंगको काज सुदारो॥२॥
तुम आये पति मारो दहीको। तिनोपार तनमन वारो॥३॥
जब मीरा शरण गिरधरकी। जीवन प्राण हमारो॥४॥
मीरा बाई का यह पद उनके प्रभु श्रीकृष्ण के प्रति गहन प्रेम और समर्पण को दर्शाता है। मीरा बाई भगवान से प्रार्थना करती हैं कि जैसे उन्होंने अहल्या का उद्धार किया, कुब्जा का उद्धार किया, और नरसिंह अवतार में प्रह्लाद की रक्षा की, वैसे ही उनकी भी रक्षा करें। अंत में, मीरा बाई कहती हैं कि जब से उन्होंने गिरधर (कृष्ण) की शरण ली है, वही उनके जीवन और प्राण हैं। यह पद मीरा बाई की भक्ति, समर्पण और भगवान के प्रति उनके अटूट विश्वास को प्रकट करता है।
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Author - Saroj Jangir
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