ऐसी लगन लगाइ कहां तू जासी मीरा बाई पदावली
ऐसी लगन लगाइ कहां तू जासी मीरा बाई पदावली
ऐसी लगन लगाइ कहां तू जासी
ऐसी लगन लगाइ कहां तू जासी ।।टेक।।
तुम देखे बिन कलि न परति है, तलफि तलफि जिव जासी।
तेरे खातिर जोगण हूँगा करबत लूँगी कासी।
तुम देखे बिन कलि न परति है, तलफि तलफि जिव जासी।
तेरे खातिर जोगण हूँगा करबत लूँगी कासी।
मीरां के प्रभु गिरधरनागर, चरण केवल की दासी।।
प्रभु के प्रति ऐसी प्रेम की लगन है कि मन कहीं और ठहर ही नहीं सकता। उनके दर्शन बिना हृदय तड़पता है, जैसे जीव हर पल उनकी खोज में बेचैन हो। इस प्रेम के लिए सारी सांसारिक मर्यादाएँ छोड़कर जोगन बनने को तैयार है, चाहे काशी की कठिन राह पर करवटें लेनी पड़े।
मीरा का मन गिरधरनागर के चरणों में दासी बनकर रम गया है, मानो कोई नदी सागर में समा जाए। जैसे कोई दीया हवा में भी जलता रहे, वैसे ही यह भक्ति हर बाधा को पार कर प्रभु के प्रेम में डूब जाती है। यह वह सत्य है, जो आत्मा को केवल उनके चरणों की सेवा में समर्पित कर देता है।
मीरा का मन गिरधरनागर के चरणों में दासी बनकर रम गया है, मानो कोई नदी सागर में समा जाए। जैसे कोई दीया हवा में भी जलता रहे, वैसे ही यह भक्ति हर बाधा को पार कर प्रभु के प्रेम में डूब जाती है। यह वह सत्य है, जो आत्मा को केवल उनके चरणों की सेवा में समर्पित कर देता है।
पानीमें मीन प्यासी । मोहे सुन सुन आवत हांसी ॥ध्रु०॥
आत्मज्ञानबिन नर भटकत है । कहां मथुरा काशी ॥१॥
भवसागर सब हार भरा है । धुंडत फिरत उदासी ॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । सहज मिळे अविनशी ॥३॥
बात क्या कहूं नागरनटकी । नागर नटकी नागर० ॥ध्रु०॥
हूं दधी बेचत जात ब्रिंदावन । छीन लीई मोरी दधीकी मटकी ॥१॥
मोर मुकूट पीतांबर शोभे । अती शोभा उस कौस्तुभ मनकी ॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । प्रीत लगी उस मुरलीधरकी ॥३॥
आत्मज्ञानबिन नर भटकत है । कहां मथुरा काशी ॥१॥
भवसागर सब हार भरा है । धुंडत फिरत उदासी ॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । सहज मिळे अविनशी ॥३॥
बात क्या कहूं नागरनटकी । नागर नटकी नागर० ॥ध्रु०॥
हूं दधी बेचत जात ब्रिंदावन । छीन लीई मोरी दधीकी मटकी ॥१॥
मोर मुकूट पीतांबर शोभे । अती शोभा उस कौस्तुभ मनकी ॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । प्रीत लगी उस मुरलीधरकी ॥३॥
(लगन=प्रेम, जासी=जाता है, कलि न परति है=चैन नहीं मिलता है, जिव=जी,प्राण, करबत,करवत=आरे से
कटना, प्राचीन लोगों का वह विश्वास था कि काशी में आरे से कटने पर मुक्ति मिल जाती है)