मेरी कानाँ सुणज्यो जी करूणा निधान
मेरी कानाँ सुणज्यो जी करूणा निधान
मेरी कानाँ सुणज्यो जी करूणा निधानमेरी कानाँ सुणज्यो जी करूणा निधान।।टेक।।
रावलो बिड़व म्हाणे रूढ़ो लागां, पीड़त म्हारो प्राण।
सगाँ सनेहाँ म्हारै णाँ क्याँई, दस्यां सकल जहान।
ग्राह गह्याँ गजराज डबार्यां, अछत कर्यां बरदान।
मीराँ दासी अरजाँ करता म्हारो सहारो णा आण।।
(कानाँ सुणज्यो=कानों से सुनिये, करूण=दया, निधान=भंडार, बिड़द=बिरद,यश, रूढ़ो=उत्तम, बैर्यां=दुश्मन, अछत=अक्षत,पूर्ण, आण=अन्य,दूसरा)
यह भी देखें You May Also Like
जब हृदय पीड़ा से व्याकुल हो, जब संसार की विषमताएँ हर ओर से घेर लें, तब एकमात्र आश्रय वही है, जो करुणा का सागर है। यह पुकार केवल शब्दों की नहीं, आत्मा की गहराई से उठने वाली व्यथा है, जो उस ईश्वर से सहारा माँगती है, जिसने हर युग में अपने भक्तों की रक्षा की है।
प्रतिष्ठा और सम्मान संसार के नियमों के अधीन हो सकते हैं, परंतु सच्ची शरण वही है, जो प्रेम और दया के आधार पर टिकी होती है। जब हर दिशा से कष्टों की आंधी आती है, जब अपने भी पराये हो जाते हैं, तब ईश्वर ही वह सम्बल हैं, जिनकी कृपा संपूर्ण जीवन को रूपांतरित कर सकती है।
गजराज की कथा इस सत्य को उजागर करती है—विपत्ति के क्षण में जब संसार ने साथ छोड़ दिया, तब केवल परमात्मा ने उसकी रक्षा की। यह विश्वास जब दृढ़ हो जाता है, तब कोई अन्य सहारा आवश्यक नहीं होता। भक्ति का मार्ग कठिन अवश्य है, लेकिन जो पूर्ण रूप से समर्पित होता है, उसे ईश्वर कभी निराश नहीं करते। यही वह पुकार है, जिसमें प्रेम, विनम्रता और संपूर्ण आत्म-समर्पण एकाकार हो जाता है। यही सच्ची आस्था है, और यही आत्मा की वास्तविक मुक्ति है।
प्रतिष्ठा और सम्मान संसार के नियमों के अधीन हो सकते हैं, परंतु सच्ची शरण वही है, जो प्रेम और दया के आधार पर टिकी होती है। जब हर दिशा से कष्टों की आंधी आती है, जब अपने भी पराये हो जाते हैं, तब ईश्वर ही वह सम्बल हैं, जिनकी कृपा संपूर्ण जीवन को रूपांतरित कर सकती है।
गजराज की कथा इस सत्य को उजागर करती है—विपत्ति के क्षण में जब संसार ने साथ छोड़ दिया, तब केवल परमात्मा ने उसकी रक्षा की। यह विश्वास जब दृढ़ हो जाता है, तब कोई अन्य सहारा आवश्यक नहीं होता। भक्ति का मार्ग कठिन अवश्य है, लेकिन जो पूर्ण रूप से समर्पित होता है, उसे ईश्वर कभी निराश नहीं करते। यही वह पुकार है, जिसमें प्रेम, विनम्रता और संपूर्ण आत्म-समर्पण एकाकार हो जाता है। यही सच्ची आस्था है, और यही आत्मा की वास्तविक मुक्ति है।
हरि गुन गावत नाचूंगी॥
आपने मंदिरमों बैठ बैठकर। गीता भागवत बाचूंगी॥१॥
ग्यान ध्यानकी गठरी बांधकर। हरीहर संग मैं लागूंगी॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। सदा प्रेमरस चाखुंगी॥३॥
तो सांवरे के रंग राची।
साजि सिंगार बांधि पग घुंघरू, लोक-लाज तजि नाची।।
गई कुमति, लई साधुकी संगति, भगत, रूप भै सांची।
गाय गाय हरिके गुण निस दिन, कालब्यालसूँ बांची।।
उण बिन सब जग खारो लागत, और बात सब कांची।
मीरा श्रीगिरधरन लालसूँ, भगति रसीली जांची।।
अपनी गरज हो मिटी सावरे हम देखी तुमरी प्रीत॥ध्रु०॥
आपन जाय दुवारका छाय ऐसे बेहद भये हो नचिंत॥ ठोर०॥१॥
ठार सलेव करित हो कुलभवर कीसि रीत॥२॥
बीन दरसन कलना परत हे आपनी कीसि प्रीत।
मीरां के प्रभु गिरिधर नागर प्रभुचरन न परचित॥३॥
शरणागतकी लाज। तुमकू शणागतकी लाज॥ध्रु०॥
नाना पातक चीर मेलाय। पांचालीके काज॥१॥
प्रतिज्ञा छांडी भीष्मके। आगे चक्रधर जदुराज॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। दीनबंधु महाराज॥३॥
आपने मंदिरमों बैठ बैठकर। गीता भागवत बाचूंगी॥१॥
ग्यान ध्यानकी गठरी बांधकर। हरीहर संग मैं लागूंगी॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। सदा प्रेमरस चाखुंगी॥३॥
तो सांवरे के रंग राची।
साजि सिंगार बांधि पग घुंघरू, लोक-लाज तजि नाची।।
गई कुमति, लई साधुकी संगति, भगत, रूप भै सांची।
गाय गाय हरिके गुण निस दिन, कालब्यालसूँ बांची।।
उण बिन सब जग खारो लागत, और बात सब कांची।
मीरा श्रीगिरधरन लालसूँ, भगति रसीली जांची।।
अपनी गरज हो मिटी सावरे हम देखी तुमरी प्रीत॥ध्रु०॥
आपन जाय दुवारका छाय ऐसे बेहद भये हो नचिंत॥ ठोर०॥१॥
ठार सलेव करित हो कुलभवर कीसि रीत॥२॥
बीन दरसन कलना परत हे आपनी कीसि प्रीत।
मीरां के प्रभु गिरिधर नागर प्रभुचरन न परचित॥३॥
शरणागतकी लाज। तुमकू शणागतकी लाज॥ध्रु०॥
नाना पातक चीर मेलाय। पांचालीके काज॥१॥
प्रतिज्ञा छांडी भीष्मके। आगे चक्रधर जदुराज॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। दीनबंधु महाराज॥३॥