फिर बाजे बरनै हरीकी मुरलीया फिर बाजे बरनै हरीकी मुरलीया सुनोरे, सखी मेरो मन हरलीनो॥१॥ गोकुल बाजी ब्रिंदाबन बाजी। ज्याय बजी वो तो मथुरा नगरीया॥२॥ तूं तो बेटो नंद बाबाको। मैं बृषभानकी पुरानी गुजरियां॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। हरिके चरनकी मैं तो बलैया॥४॥
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अच्छे मीठे फल चाख चाख, बेर लाई भीलणी। ऎसी कहा अचारवती, रूप नहीं एक रती। नीचे कुल ओछी जात, अति ही कुचीलणी।
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जूठे फल लीन्हे राम, प्रेम की प्रतीत त्राण। उँच नीच जाने नहीं, रस की रसीलणी। ऎसी कहा वेद पढी, छिन में विमाण चढी। हरि जू सू बाँध्यो हेत, बैकुण्ठ में झूलणी। दास मीरां तरै सोई, ऎसी प्रीति करै जोइ। पतित पावन प्रभु, गोकुल अहीरणी।
अजब सलुनी प्यारी मृगया नैनों। तें मोहन वश कीधो रे॥ध्रु०॥ गोकुळ मां सौ बात करेरे बाला कां न कुबजे वश लीधो रे॥१॥ मनको सो करी ते लाल अंबाडी अंकुशे वश कीधो रे॥२॥ लवींग सोपारी ने पानना बीदला राधांसु रारुयो कीनो रे॥३॥ मीरां कहे प्रभु गिरिधर नागर चरणकमल चित्त दीनो रे॥४॥