छैल बिराणे लाख को हे अपणे काज न होइ
छैल बिराणे लाख को हे अपणे काज न होइ
छैल बिराणे लाख को हे अपणे काज न होइ
छैल बिराणे लाख को हे अपणे काज न होइ।
ताके संग सीधारतां हे, भला न कहसी कोइ।
वर हीणों आपणों भलो हे, कोढी कुष्टि कोइ।
जाके संग सीधारतां है, भला कहै सब लोइ।
अबिनासी सूं बालवां हे, जिपसूं सांची प्रीत।
मीरा कूं प्रभु मिल्या हे, ऐहि भगति की रीत॥
छैल बिराणे लाख को हे अपणे काज न होइ।
ताके संग सीधारतां हे, भला न कहसी कोइ।
वर हीणों आपणों भलो हे, कोढी कुष्टि कोइ।
जाके संग सीधारतां है, भला कहै सब लोइ।
अबिनासी सूं बालवां हे, जिपसूं सांची प्रीत।
मीरा कूं प्रभु मिल्या हे, ऐहि भगति की रीत॥
संसार में बाहरी आकर्षण और भौतिक वैभव का मूल्य प्रायः अधिक समझा जाता है, लेकिन भक्ति की दृष्टि से यह माया का बंधन है। जो व्यक्ति बाहरी सौंदर्य, संपत्ति या सामाजिक प्रतिष्ठा में ही सार देखता है, वह इस गहन सत्य को नहीं पहचान पाता कि वास्तविक सुंदरता आत्मा की पवित्रता में निहित है।
सच्ची भक्ति में कोई सांसारिक गणना नहीं होती—यह केवल प्रेम का सहज प्रवाह होता है। भले ही कोई बाह्य रूप से असिद्ध प्रतीत हो, यदि उसके हृदय में श्रद्धा और प्रेम की सच्ची ज्वाला जल रही हो, तो वह ईश्वर के निकटतम स्थान पर होता है। भक्ति में यह भेद नहीं कि कौन समृद्ध है, कौन निर्धन, कौन सुशोभित है, कौन साधारण—यह प्रेम की वह अनुभूति है, जो आत्मा को परम सत्य से जोड़ती है।
ईश्वर के साथ जुड़ने का मार्ग केवल हृदय की सच्ची पुकार से तय होता है। जब आत्मा निर्मल होती है, जब प्रेम में कोई स्वार्थ नहीं रहता, तब ही व्यक्ति ईश्वर को प्राप्त करता है। यह भक्ति किसी बाहरी कर्मकांड पर नहीं, बल्कि श्रद्धा के उस गहरे भाव पर आधारित होती है, जहाँ समर्पण संपूर्ण और निःस्वार्थ होता है।
मीराँ की भक्ति इसी सत्य को प्रकट करती है—जहाँ ईश्वर केवल बाहरी रूप से नहीं, बल्कि भीतर के प्रेम और श्रद्धा में साक्षात होते हैं। यही भक्ति की पराकाष्ठा है—जहाँ साधक का समर्पण पूर्ण होता है, और वह उस शाश्वत आनंद में विलीन हो जाता है।
सच्ची भक्ति में कोई सांसारिक गणना नहीं होती—यह केवल प्रेम का सहज प्रवाह होता है। भले ही कोई बाह्य रूप से असिद्ध प्रतीत हो, यदि उसके हृदय में श्रद्धा और प्रेम की सच्ची ज्वाला जल रही हो, तो वह ईश्वर के निकटतम स्थान पर होता है। भक्ति में यह भेद नहीं कि कौन समृद्ध है, कौन निर्धन, कौन सुशोभित है, कौन साधारण—यह प्रेम की वह अनुभूति है, जो आत्मा को परम सत्य से जोड़ती है।
ईश्वर के साथ जुड़ने का मार्ग केवल हृदय की सच्ची पुकार से तय होता है। जब आत्मा निर्मल होती है, जब प्रेम में कोई स्वार्थ नहीं रहता, तब ही व्यक्ति ईश्वर को प्राप्त करता है। यह भक्ति किसी बाहरी कर्मकांड पर नहीं, बल्कि श्रद्धा के उस गहरे भाव पर आधारित होती है, जहाँ समर्पण संपूर्ण और निःस्वार्थ होता है।
मीराँ की भक्ति इसी सत्य को प्रकट करती है—जहाँ ईश्वर केवल बाहरी रूप से नहीं, बल्कि भीतर के प्रेम और श्रद्धा में साक्षात होते हैं। यही भक्ति की पराकाष्ठा है—जहाँ साधक का समर्पण पूर्ण होता है, और वह उस शाश्वत आनंद में विलीन हो जाता है।
Meera Bai Pad
थारी छूँ रमइया मोसूं नेह निभावौ
थारे कारण सब सुख छोड्या क्यों हमकौ तरसावौ
बिरह बिथा लागी उर अंतर सो तुम आय बुझावौ
अब छोड्या नहिं बनै प्रभु जी हँस कर निकल बुलावौ
मीराँ दासी जणम जणम री प्रीतराँ रंग लगावौ
थारे कारण सब सुख छोड्या क्यों हमकौ तरसावौ
बिरह बिथा लागी उर अंतर सो तुम आय बुझावौ
अब छोड्या नहिं बनै प्रभु जी हँस कर निकल बुलावौ
मीराँ दासी जणम जणम री प्रीतराँ रंग लगावौ
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