किन्ने देखा कन्हया प्यारा मीरा पदावली

किन्ने देखा कन्हया प्यारा मीरा बाई पदावली

किन्ने देखा कन्हया प्यारा
किन्ने देखा कन्हया प्यारा की मुरलीवाला॥टेक॥
जमुनाके नीर गंवा चरावे। खांदे कंबरिया काला॥१॥
मोर मुकुट पितांबर शोभे। कुंडल झळकत हीरा॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। चरन कमल बलहारा॥३॥
 
 कन्हैया का वह प्यारा रूप मन को ऐसा मोह लेता है, जैसे मुरली की तान हर सांस को बाँध ले। जमुना के तट पर गायें चराते, कमर में काला कंबल लपेटे उनका सादा सौंदर्य हृदय को लुभाता है। मोर-मुकुट, पीतांबर, और कानों में चमकते हीरे के कुंडल उनकी शोभा को और निखारते हैं, मानो साक्षात सौंदर्य सजीव हो उठे।

मीरा का मन उनके चरण-कमलों में रम गया, जहाँ हर धड़कन उनके प्रति समर्पण बन जाती है। जैसे कोई तितली फूल की सुगंध में खो जाए, वैसे ही यह भक्ति प्रभु के दर्शन में डूबकर आत्मा को अनंत सुख देती है। यह प्रेम का वह रंग है, जो जीवन को गिरिधर के प्रति न्योछावर कर देता है।
 
मैंतो तेरे भजन भरोसे अबिनासी ॥ मैतो० ॥ध्रु०॥
तीरथ बरतते कछु नहीं कीनो । बन फिरे हैं उदासी ॥ मैंतो० तेरे ॥१॥
जंतर मंतर कछु नहीं जानूं । बेद पठो नहीं कासी ॥ मैतो० तेरे ॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । भई चरणकी दासी ॥ मैतो० तेरे ॥३॥

काना चालो मारा घेर कामछे । सुंदर तारूं नामछे ॥ध्रु०॥
मारा आंगनमों तुलसीनु झाड छे । राधा गौळण मारूं नामछे ॥१॥
आगला मंदिरमा ससरा सुवेलाछे । पाछला मंदिर सामसुमछे ॥२॥
मोर मुगुट पितांबर सोभे । गला मोतनकी मालछे ॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । चरन कमल चित जायछे ॥४॥

जमुनाजीको तीर दधी बेचन जावूं ॥ध्रु०॥
येक तो घागर सिरपर भारी दुजा सागर दूर ॥१॥
कैसी दधी बेचन जावूं एक तो कन्हैया हटेला दुजा मखान चोर ॥ कैसा०॥२॥
येक तो ननंद हटेली दुजा ससरा नादान ॥३॥
है मीरा दरसनकुं प्यासी । दरसन दिजोरे महाराज ॥४॥

कुबजानें जादु डारा । मोहे लीयो शाम हमारारे ॥ कुबजा० ॥ध्रु०॥
दिन नहीं चैन रैन नहीं निद्रा । तलपतरे जीव हमरारे ॥ कुब०॥१॥
निरमल नीर जमुनाजीको छांड्यो । जाय पिवे जल खारारे ॥ कु०॥२॥

इत गोकुल उत मथुरा नगरी । छोड्यायो पिहु प्यारा ॥ कु०॥३॥
मोर मुगुट पितांबर शोभे । जीवन प्रान हमारा ॥ कु०॥४॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । बिरह समुदर सारा ॥ कुबजानें जादू डारारे कुब०॥५॥

तोती मैना राधे कृष्ण बोल । तोती मैना राधे कृष्ण बोल ॥ध्रु०॥
येकही तोती धुंडत आई । लकट किया अनी मोल ॥तोती मै०॥१॥
दाना खावे तोती पानी पीवे । पिंजरमें करत कल्लोळ ॥ तो०॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । हरिके चरण चित डोल ॥ तो० ॥३॥  
 
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