कृष्ण करो जजमान मीरा बाई पदावली

कृष्ण करो जजमान मीरा बाई पदावली

कृष्ण करो जजमान
 कृष्ण करो जजमान॥ प्रभु तुम॥टेक॥
जाकी किरत बेद बखानत। सांखी देत पुरान॥२॥
मोर मुकुट पीतांबर सोभत। कुंडल झळकत कान॥३॥
मीराके प्रभू गिरिधर नागर। दे दरशनको दान॥४॥
 
प्रभु कृष्ण को हृदय का जजमान मानकर मन उनकी भक्ति में रम जाता है। उनकी महिमा वेद और पुराण गाते हैं, सांख्य दर्शन उनकी किरत का बखान करता है। मोर-मुकुट और पीतांबर में सजा उनका रूप, कानों में चमकते कुंडल, मन को मोह लेते हैं, जैसे सूरज की किरणें अंधेरे को चीर दें।

मीरा का मन उनके दर्शन की याचना करता है, जो सबसे अनमोल दान है। जैसे कोई पथिक रेगिस्तान में ओझल झरने की तलाश करता हो, वैसे ही यह भक्ति प्रभु के दर्शन की प्यास में डूबा रहता है। यह प्रेम और श्रद्धा का वह बंधन है, जो आत्मा को गिरिधर के चरणों में बांधकर जीवन को सार्थक बनाता है। 


Bhakti Padawali (Meera Ke Bhajan) /भक्ति पदावली (मीरा के भजन)
 
ज्यानो मैं राजको बेहेवार उधवजी । मैं जान्योही राजको बेहेवार ।
आंब काटावो लिंब लागावो । बाबलकी करो बाड ॥जा०॥१॥
चोर बसावो सावकार दंडावो । नीती धरमरस बार ॥ जा० ॥२॥
मेरो कह्यो सत नही जाणयो । कुबजाके किरतार ॥ जा० ॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । अद्वंद दरबार ॥ जा० ॥४॥

मेरे तो आज साचे राखे हरी साचे । सुदामा अति सुख पायो दरिद्र दूर करी ॥ मे०॥१॥
साचे लोधि कहे हरी हाथ बंधाये । मारखाधी ते खरी ॥ मे० ॥२॥
साच बिना प्रभु स्वप्नामें न आवे । मरो तप तपस्या करी ॥ मे० ॥३॥
मीरा कहे प्रभू गिरिधर नागर । बल जाऊं गडी गडीरे ॥ मे० ॥४॥

कोईकी भोरी वोलो म‍इंडो मेरो लूंटे ॥ध्रु०॥
छोड नैया ओढणी हमारी । माट महिकी काना मेरी फुटे ॥ को० ॥१॥
छोड कनैया मैयां हमारी । लड मानूकी काना मेरी तूटे ॥ को० ॥२॥
छोडदे कनैया चीर हमारो । कोर जरीकी काना मेरी छुटे ॥ को० ॥३॥
मीरा कहे प्रभू गिरिधर नागर । लागी लगन काना मेरी नव छूटे ॥ को० ॥४॥

कायकूं देह धरी भजन बिन कोयकु देह गर्भवासकी त्रास देखाई धरी वाकी पीठ बुरी ॥ भ० ॥१॥
कोल बचन करी बाहेर आयो अब तूम भुल परि ॥ भ० ॥२॥
नोबत नगारा बाजे । बघत बघाई कुंटूंब सब देख ठरी ॥ भ० ॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । जननी भार मरी ॥ भ० ॥४॥ 
 
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