कीत गयो जादु करके नो पीया मीरा बाई पदावली
कीत गयो जादु करके नो पीया मीरा बाई पदावली
कीत गयो जादु करके नो पीया
कीत गयो जादु करके नो पीया॥टेक॥
नंदनंदन पीया कपट जो कीनो। नीकल गयो छल करके॥१॥
मोर मुगुट पितांबर शोभे। कबु ना मीले आंग भरके॥२॥
मीरा दासी शरण जो आई। चरणकमल चित्त धरके॥३॥
कीत गयो जादु करके नो पीया॥टेक॥
नंदनंदन पीया कपट जो कीनो। नीकल गयो छल करके॥१॥
मोर मुगुट पितांबर शोभे। कबु ना मीले आंग भरके॥२॥
मीरा दासी शरण जो आई। चरणकमल चित्त धरके॥३॥
प्रभु का प्रेम ऐसा जादू है, जो मन को मोह लेता है और आत्मा को अपने रंग में रंग देता है। नंदनंदन की वह चपलता, जो कपट और छल से हृदय को बाँध लेती है, फिर भी उनकी एक झलक के लिए मन तरसता रहता है। मोर-मुकुट और पीतांबर में सजा उनका रूप इतना मनोहर है कि पास आने पर भी मन भरा नहीं भरता।
मीरा ने उनकी शरण ली, उनके चरण-कमलों को चित्त में बसाया, मानो कोई प्यासा सागर के किनारे ठहर जाए। यह भक्ति का वह जादू है, जो सारे संसार को भुलाकर केवल प्रभु के प्रेम में डुबो देता है। जैसे दीया हवा में भी जलता रहे, वैसे ही यह प्रेम हर बाधा को पार कर आत्मा को सदा के लिए बाँध लेता है।
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