कान्हो काहेकूं मारो मोकूं कांकरी मीरा पदावली
कान्हो काहेकूं मारो मोकूं कांकरी मीरा बाई पदावली
कान्हो काहेकूं मारो मोकूं कांकरी
कान्हो काहेकूं मारो मोकूं कांकरी। कांकरी कांकरी कांकरीरे॥टेक॥
गायो भेसो तेरे अवि होई है। आगे रही घर बाकरीरे॥१॥
पाट पितांबर काना अबही पेहरत है। आगे न रही कारी घाबरीरे॥२॥
मेडी मेहेलात तेरे अबी होई है। आगे न रही वर छापरीरे॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। शरणे राखो तो करूं चाकरीरे॥४॥
कान्हो काहेकूं मारो मोकूं कांकरी। कांकरी कांकरी कांकरीरे॥टेक॥
गायो भेसो तेरे अवि होई है। आगे रही घर बाकरीरे॥१॥
पाट पितांबर काना अबही पेहरत है। आगे न रही कारी घाबरीरे॥२॥
मेडी मेहेलात तेरे अबी होई है। आगे न रही वर छापरीरे॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। शरणे राखो तो करूं चाकरीरे॥४॥
जीवन की नश्वरता और भक्ति का गहरा संदेश इस भजन में समाया है। सब कुछ क्षणिक है—गाय, भैंस, धन-संपत्ति, सुंदर वस्त्र, महल-माटी, ये सारी सांसारिक चीजें आज हैं, कल नहीं रहेंगी। जैसे कन्हैया की कंकरी क्षण में चोट पहुंचाती है, वैसे ही सांसारिक मोह की चोट भी अस्थायी है। सच्चाई केवल प्रभु की शरण में है, जहाँ आत्मा को शांति और स्थिरता मिलती है। उदाहरण के लिए, जैसे कोई राहगीर छांव में ठहरता है, पर उसका ठिकाना तो आगे की यात्रा है, वैसे ही यह जीवन एक पड़ाव है। सच्चा सुख प्रभु की भक्ति में है, जो मन को मोह के बंधनों से मुक्त करती है। शरणागति ही वह मार्ग है, जहाँ नश्वरता का भय समाप्त हो जाता है और आत्मा अनंत के साथ एकाकार होती है। प्रभु की चाकरी में ही जीवन का सच्चा उद्देश्य है, जो मनुष्य को क्षणिक सुखों से ऊपर उठाकर अनंत आनंद की ओर ले जाती है।
मोहन डार दीनो गले फांसी ॥ध्रु०॥
ऐसा जो होता मेरे नयनमें । करवत ले जाऊं कासी ॥१॥
आंबाके बनमें कोयल बोले बचन उदासी ॥२॥
मीरा दासी प्रभु छबी नीरखत । तूं मेरा ठाकोर मैं हूं तोरी दासी ॥३॥
कुंजबनमों गोपाल राधे ॥ध्रु०॥
मोर मुकुट पीतांबर शोभे । नीरखत शाम तमाल ॥१॥
ग्वालबाल रुचित चारु मंडला । वाजत बनसी रसाळ ॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । चरनपर मन चिरकाल ॥३॥
ज्या संग मेरा न्याहा लगाया । वाकू मैं धुंडने जाऊंगी ॥ध्रु०॥
जोगन होके बनबन धुंडु । आंग बभूत रमायोरे ॥१॥
गोकुल धुंडु मथुरा धुंडु । धुंडु फीरूं कुंज गलीयारे ॥२॥
मीरा दासी शरण जो आई । शाम मीले ताहां जाऊंरे ॥३॥