प्रभुजी थें कहाँ गया नेहड़ो लगाय

प्रभुजी थें कहाँ गया नेहड़ो लगाय

प्रभुजी थें कहाँ गया, नेहड़ो लगाय
प्रभुजी थें कहाँ गया, नेहड़ो लगाय।
छोड़ गया बिस्वास संगाती प्रेम की बाती बलाय।।
बिरह समंद में छोड़ गया छो नेहकी नाव चलाय।
मीरा के प्रभु कब रे मिलोगे तुम बिन रह्यो न जाय।।

प्रियतम के बिना मन की व्यथा उस नाविक सी है, जो समंदर में बिना पतवार के भटकता है। प्रभु का साथ छूटने से विश्वास और प्रेम की बाती मंद पड़ जाती है, जैसे दीया बिना तेल के बुझने लगता है। यह विरह का सागर इतना गहरा है, कि प्रेम की नाव भी डगमगा जाती है।

उनके बिना जीवन का हर पल भारी है, जैसे रात बिना चाँद के अंधेरी हो। मन की यह तड़प, कि कब मिलन होगा, वह प्यास है, जो केवल उनके दर्शन से बुझती है। प्रभु का नाम वह किनारा है, जो इस सागर से पार उतारता है।

मन को उनकी शरण में अर्पित करो, क्योंकि उनकी कृपा ही वह ठिकाना है, जो विरह की आग को शांत करता है। उनके चरणों में लीन होना, वह प्रेम है, जो आत्मा को सदा के लिए तृप्त कर देता है।
 
स्याम! मने चाकर राखो जी
गिरधारी लाला! चाकर राखो जी।
चाकर रहसूं बाग लगासूं नित उठ दरसण पासूं।
ब्रिंदाबन की कुंजगलिन में तेरी लीला गासूं।।
चाकरी में दरसण पाऊँ सुमिरण पाऊँ खरची।
भाव भगति जागीरी पाऊँ, तीनूं बाता सरसी।।
मोर मुकुट पीताम्बर सोहै, गल बैजंती माला।
ब्रिंदाबन में धेनु चरावे मोहन मुरलीवाला।।
हरे हरे नित बाग लगाऊँ, बिच बिच राखूं क्यारी।
सांवरिया के दरसण पाऊँ, पहर कुसुम्मी सारी।
जोगी आया जोग करणकूं, तप करणे संन्यासी।
हरी भजनकूं साधू आया ब्रिंदाबन के बासी।।
मीरा के प्रभु गहिर गंभीरा सदा रहो जी धीरा।
आधी रात प्रभु दरसन दीन्हें, प्रेमनदी के तीरा।।

चालने सखी दही बेचवा जइंये, ज्या सुंदर वर रमतोरे॥ध्रु०॥
प्रेमतणां पक्कान्न लई साथे। जोईये रसिकवर जमतोरे॥१॥
मोहनजी तो हवे भोवो थयो छे। गोपीने नथी दमतोरे॥२॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। रणछोड कुबजाने गमतोरे॥३॥

चालो अगमके देस कास देखत डरै।
वहां भरा प्रेम का हौज हंस केल्यां करै॥
ओढ़ण लज्जा चीर धीरज कों घांघरो।
छिमता कांकण हाथ सुमत को मूंदरो॥
दिल दुलड़ी दरियाव सांचको दोवडो।
उबटण गुरुको ग्यान ध्यान को धोवणो॥
कान अखोटा ग्यान जुगतको झोंटणो।
बेसर हरिको नाम चूड़ो चित ऊजणो॥
पूंची है बिसवास काजल है धरमकी।
दातां इम्रत रेख दयाको बोलणो॥
जौहर सील संतोष निरतको घूंघरो।
बिंदली गज और हार तिलक हरि-प्रेम रो॥
सज सोला सिणगार पहरि सोने राखड़ीं।
सांवलियांसूं प्रीति औरासूं आखड़ी॥
पतिबरता की सेज प्रभुजी पधारिया।
गावै दासि कर राखिया॥


प्रभुजी थे कहाँ गए नेहड़ो लगाय ( मीरां पद) - Lata Tiwari 
 
हृदय की गहराई में बसे प्रभु के प्रति प्रेम और विश्वास ही जीवन का सच्चा आधार है। जब प्रभु की अनुपस्थिति का अहसास होता है, तब मन एक अनंत विरह की समुद्र में डूबने लगता है। यह विरह केवल दूरी का नहीं, बल्कि उस गहरे प्रेम का दर्द है जो भक्त को हर पल प्रभु के करीब लाता है। जैसे कोई दीया हवा के झोंके में काँपता है, वैसे ही प्रभु के बिना मन की आस्था डगमगा उठती है, पर वह प्रेम की ज्योत कभी बुझने नहीं देता।

प्रभु के साथ का विश्वास वह नाव है जो जीवन के तूफानों में भी भक्त को पार लगाती है। जब यह नाव डोलती है, तब मन व्याकुल हो उठता है, फिर भी वह प्रेम ही है जो उसे प्रभु की ओर खींचता है। जैसे कोई प्यासा स्रोत की तलाश में भटकता है, वैसे ही भक्त प्रभु के दर्शन की आस में तड़पता है। यह तड़प कमजोरी नहीं, बल्कि उस अटूट प्रेम का प्रमाण है जो प्रभु को हर क्षण हृदय में बसाए रखता है। 
 
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