कमल दल लीचमआं थे नाथ्यां काल भुजंग

कमल दल लीचमआं थे नाथ्यां काल भुजंग मीरा बाई पदावली

कमल दल लीचमआं थे नाथ्यां काल भुजंग
कमल दल लीचमआं थे नाथ्यां काल भुजंग।।टेक।।
कालिन्दी दह नाग नक्यो काल फण फण निर्त अंत।
कूदां जल अन्तर णां डर्यौ को एक बाहु अणन्त।
मीरां रे प्रभु गिरधरनागर, ब्रजवणितांरो कन्त।।
 
 (काल=मृत्यु के समान भयंकर, भुजंग=साँप, कालिया नाग, कालिन्दी=यमुना, निर्त=नृत्य, णाँ डर्यो=डरा नहीं, ब्रजबणितांरो=ब्रज की बनिताओं का, कन्त=पति)
 
प्रभु की शक्ति और कृपा ऐसी है, जैसे कमल के पत्ते पर बैठकर वे कालरूपी सर्प पर विजय पाते हैं। यमुना के गहरे जल में कालिया नाग को नाथने वाला उनका नृत्य केवल लीला नहीं, बल्कि भय और अंधकार पर विजय का प्रतीक है। अनंत भुजाओं वाला प्रभु जल के बीच बिना डरे कूद पड़ता है, जैसे कोई रक्षक संकट में अपने भक्त को बचा ले।

मीरा का मन गिरधरनागर में रम गया, जो ब्रज की वनिताओं के प्रियतम हैं। जैसे कमल कीचड़ में भी निर्मल खिलता है, वैसे ही उनकी भक्ति हर भय को मिटाकर आत्मा को प्रभु के प्रेम में डुबो देती है। यह वह सत्य है, जो जीवन को संकटों से पार कर चरणों में शांति देता है।

sundar shyam kamal dal lochan। सुंदर श्याम कमल दल लोचन। पद रत्नाकर


देखोरे देखो जसवदा मैय्या तेरा लालना । तेरा लालना मैय्यां झुले पालना ॥ध्रु०॥
बाहार देखे तो बारारे बरसकु । भितर देखे मैय्यां झुले पालना ॥१॥
जमुना जल राधा भरनेकू निकली । परकर जोबन मैय्यां तेरा लालना ॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । हरिका भजन नीत करना ॥ मैय्यां० ॥३॥

जसवदा मैय्यां नित सतावे कनैय्यां । वाकु भुरकर क्या कहुं मैय्यां ॥ध्रु०॥
बैल लावे भीतर बांधे । छोर देवता सब गैय्यां ॥ जसवदा मैया०॥१॥
सोते बालक आन जगावे । ऐसा धीट कनैय्यां ॥२॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर । हरि लागुं तोरे पैय्यां ॥ जसवदा० ॥३॥

कालोकी रेन बिहारी । महाराज कोण बिलमायो ॥ध्रु०॥
काल गया ज्यां जाहो बिहारी । अही तोही कौन बुलायो ॥१॥
कोनकी दासी काजल सार्यो । कोन तने रंग रमायो ॥२॥
कंसकी दासी काजल सार्यो । उन मोहि रंग रमायो ॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर । कपटी कपट चलायो ॥४॥
 
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