माई म्हाणो सुपणा मां परण्यां दीनानाथ

माई म्हाणो सुपणा मां परण्यां दीनानाथ

माई म्हाणो सुपणा मां परण्यां दीनानाथ
माई म्हाणो सुपणा मां परण्यां दीनानाथ।
छप्पण कोटां जणां पधारयां दूल्हो सिरी व्रजनाथ।
सुपणा मां तोरण बेंध्यारी सुपणामां गह्या हाथ।
सुपणां मां म्हारे परण गया पायां अचल सुहाग।
मीरां रो गिरधर मिल्यारी, पुरब जणम रो भाग।।

(सुपण=स्वप्न, परण्या=विवाह कर लिया, जणाँ= जन, बराती, सिरी=श्री, ब्रजनाथ=श्रीकृष्ण, तोरण= द्वार)

 
मन में प्रभु के प्रति गहरा प्रेम और समर्पण है, जैसे स्वप्न में दीनानाथ से मिलन हो गया हो। यह आत्मा का उनके साथ अटूट बंधन है, मानो विवाह का पवित्र रिश्ता जुड़ गया। उनके आगमन की कल्पना ऐसी है, जैसे श्रीकृष्ण स्वयं दूल्हा बनकर, अनगिनत बरातियों के साथ पधारे हों। द्वार पर तोरण सजा है, हाथों में प्रेम का गहना थमा है। यह बंधन अडिग है, सुहाग की तरह अमर, जो आत्मा को प्रभु के चरणों में बांधे रखता है।

यह मिलन पूर्वजन्मों के पुण्य का फल है, जहां मीरां का मन गिरधर के रंग में रंग गया। प्रेम की यह डोर अनंत है, जो आत्मा को हर पल प्रभु की ओर खींचती है। भक्ति का यह स्वप्न वास्तविकता से परे, फिर भी मन को सत्य का आलोक देता है।
फागुन के दिन चार होली खेल मना रे॥
बिन करताल पखावज बाजै अणहदकी झणकार रे।
बिन सुर राग छतीसूं गावै रोम रोम रणकार रे॥
सील संतोखकी केसर घोली प्रेम प्रीत पिचकार रे।
उड़त गुलाल लाल भयो अंबर, बरसत रंग अपार रे॥
घटके सब पट खोल दिये हैं लोकलाज सब डार रे।
मीराके प्रभु गिरधर नागर चरणकंवल बलिहार रे॥

फिर बाजे बरनै हरीकी मुरलीया सुनोरे, सखी मेरो मन हरलीनो॥१॥
गोकुल बाजी ब्रिंदाबन बाजी। ज्याय बजी वो तो मथुरा नगरीया॥२॥
तूं तो बेटो नंद बाबाको। मैं बृषभानकी पुरानी गुजरियां॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। हरिके चरनकी मैं तो बलैया॥४॥

बसो मोरे नैनन में नंदलाल।
मोहनी मूरति सांवरि सूरति, नैणा बने बिसाल।
अधर सुधारस मुरली राजत, उर बैजंती-माल।।
छुद्र घंटिका कटि तट सोभित, नूपुर सबद रसाल।
मीरा प्रभु संतन सुखदाई, भगत बछल गोपाल।।

फूल मंगाऊं हार बनाऊ। मालीन बनकर जाऊं॥१॥
कै गुन ले समजाऊं। राजधन कै गुन ले समाजाऊं॥२॥
गला सैली हात सुमरनी। जपत जपत घर जाऊं॥३॥
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। बैठत हरिगुन गाऊं॥४॥

बड़े घर ताली लागी रे, म्हारां मन री उणारथ भागी रे॥
छालरिये म्हारो चित नहीं रे, डाबरिये कुण जाव।
गंगा जमना सूं काम नहीं रे, मैंतो जाय मिलूं दरियाव॥
हाल्यां मोल्यांसूं काम नहीं रे, सीख नहीं सिरदार।
कामदारासूं काम नहीं रे, मैं तो जाब करूं दरबार॥
काच कथीरसूं काम नहीं रे, लोहा चढ़े सिर भार।
सोना रूपासूं काम नहीं रे, म्हारे हीरांरो बौपार॥
भाग हमारो जागियो रे, भयो समंद सूं सीर।
अम्रित प्याला छांडिके, कुण पीवे कड़वो नीर॥
पीपाकूं प्रभु परचो दियो रे, दीन्हा खजाना पूर।
मीरा के प्रभु गिरघर नागर, धणी मिल्या छै हजूर॥
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