प्रभु प्रेम बनाये रखना चरणों से लगाए भजन
प्रभु प्रेम बनाये रखना चरणों से लगाए रखना भजन
प्रभु प्रेम बनाये रखना,चरणों से लगाए रखना।
एक आस तुम्हारी है,
विश्वास तुम्हारा है,
तेरा ही भरोसा है,
तेरा ही सहारा है,
प्रभु प्रेम बनाये रखना,
चरणों से लगाए रखना।
निर्बल के बल हो हारे के साथी,
हर दीपक में तेरी ही बाती,
तेरा उजियारा है,
रोशन जग सारा है,
तुमसे ही चमक रहा,
हर चाँद सितारा है,
प्रभु प्रेम बनाये रखना,
चरणों से लगाए रखना।
प्रेम का भूखा सारा जहा है,
तुझ बिन साँचा प्रेम कहाँ है,
तू प्रेम का ठाकुर है,
तू प्रेम पुजारी है,
इसे सबको लूटा रहा,
तेरी दातारी है,
प्रभु प्रेम बनाये रखना,
चरणों से लगाए रखना।
चरण शरण में हमको निभाना,
सर्वस्व अपना तुमको ही माना,
शक्ति का दाता तू,
भक्ति का दाता तू,
बिन्नू इतना जाने,
मेरा भाग्य विधाता तू,
प्रभु प्रेम बनाये रखना,
चरणों से लगाए रखना।
प्रभु प्रेम बनाये रखना,
चरणों से लगाए रखना।
एक आस तुम्हारी है,
विश्वास तुम्हारा है,
तेरा ही भरोसा है,
तेरा ही सहारा है,
प्रभु प्रेम बनाये रखना,
चरणों से लगाए रखना।
सुन्दर भजन में श्रीकृष्णजी के प्रति अटूट प्रेम और उनके चरणों में समर्पण की गहरी भावना व्यक्त है। भक्त की एकमात्र चाह है कि प्रभु का प्रेम और उनके चरणों से नाता बना रहे। यह विश्वास और भरोसा कि श्रीकृष्णजी ही एकमात्र सहारा हैं, हृदय को दृढ़ता देता है। जैसे एक बच्चा माता के आँचल में सुरक्षित महसूस करता है, वैसे ही भक्त प्रभु के प्रेम में शांति पाता है। यह उद्गार सिखाता है कि सच्चा प्रेम और भक्ति ही जीवन का आधार हैं, जो मन को हर परिस्थिति में स्थिर रखते हैं।
श्रीकृष्णजी निर्बल के बल और हारे के साथी हैं, जो हर दीपक की ज्योति और जगत के उजाले का स्रोत हैं। उनका प्रेम सारा संसार खोजता है, क्योंकि सच्चा प्रेम केवल वही हैं। वह प्रेम के ठाकुर और पुजारी हैं, जो अपनी दातारी से सभी को प्रेम लुटाते हैं। भक्त उन्हें शक्ति, भक्ति और भाग्य का दाता मानता है, जो उसके सर्वस्व हैं। जैसे सूरज बिना भेदभाव के सबको प्रकाश देता है, वैसे ही श्रीकृष्णजी का प्रेम हर हृदय को आलोकित करता है। यह भाव दर्शाता है कि प्रभु के चरणों की शरण में रहकर जीवन प्रेम और कृपा से परिपूर्ण हो जाता है।
श्रीकृष्णजी निर्बल के बल और हारे के साथी हैं, जो हर दीपक की ज्योति और जगत के उजाले का स्रोत हैं। उनका प्रेम सारा संसार खोजता है, क्योंकि सच्चा प्रेम केवल वही हैं। वह प्रेम के ठाकुर और पुजारी हैं, जो अपनी दातारी से सभी को प्रेम लुटाते हैं। भक्त उन्हें शक्ति, भक्ति और भाग्य का दाता मानता है, जो उसके सर्वस्व हैं। जैसे सूरज बिना भेदभाव के सबको प्रकाश देता है, वैसे ही श्रीकृष्णजी का प्रेम हर हृदय को आलोकित करता है। यह भाव दर्शाता है कि प्रभु के चरणों की शरण में रहकर जीवन प्रेम और कृपा से परिपूर्ण हो जाता है।
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