कबीर साहेब के दोहे हिंदी मीनिंग

सरल हिंदी अर्थ में कबीर साहेब के दोहे जानिये

कबीर थोड़ा जीवना, माढ़ै बहुत मढ़ान ।
सबही ऊभ पन्थ सिर, राव रंक सुल्तान ॥

कबीर नौबत आपनी, दिन दस लेहु बजाय ।
यह पुर पटृन यह गली, बहुरि न देखहु आय ॥

कबीर गर्ब न कीजिये, जाम लपेटी हाड़ ।
इस दिन तेरा छत्र सिर, देगा काल उखाड़ ॥

कबीर यह तन जात है, सकै तो ठोर लगाव ।
कै सेवा करूँ साधु की, कै गुरु के गुन गाव ॥

कबीर जो दिन आज है, सो दिन नहीं काल ।
चेति सकै तो चेत ले, मीच परी है ख्याल ॥

कबीर खेत किसान का, मिरगन खाया झारि ।
खेत बिचारा क्या करे, धनी करे नहिं बारि ॥

कबीर यह संसार है, जैसा सेमल फूल ।
दिन दस के व्यवहार में, झूठे रंग न भूल ॥
 
 कबीर थोड़ा जीवना, माढ़ै बहुत मढ़ान।
सबही ऊभ पन्थ सिर, राव रंक सुल्तान।


अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि जीवन छोटा है, लेकिन संसार में सभी प्रकार के लोग हैं—राजा, रंक, और सुलतान। सभी का अंत एक ही है।

कबीर नौबत आपनी, दिन दस लेहु बजाय।
यह पुर पटृन यह गली, बहुरि न देखहु आय।


अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि अपनी बधाई की ध्वनि दस दिन तक बजाओ, क्योंकि यह पुराना घर और गली फिर कभी नहीं दिखेंगे।

कबीर गर्ब न कीजिये, जाम लपेटी हाड़।
इस दिन तेरा छत्र सिर, देगा काल उखाड़।


अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि गर्व मत करो, क्योंकि शरीर की हड्डियों पर चमड़ा लपेटा हुआ है। एक दिन काल तुम्हारे सिर के मुकुट को उखाड़ देगा।

कबीर यह तन जात है, सकै तो ठोर लगाव।
कै सेवा करूँ साधु की, कै गुरु के गुन गाव।


अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि यह शरीर नश्वर है, यदि संभव हो तो इसे स्थिर करो। मैं साधु की सेवा कैसे करूँ और गुरु के गुण कैसे गाऊँ?

कबीर जो दिन आज है, सो दिन नहीं काल।
चेति सकै तो चेत ले, मीच परी है ख्याल।


अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि जो दिन आज है, वह कल नहीं होगा। यदि चेतना है, तो अब जागो, क्योंकि समय की कोई गारंटी नहीं है।
 
कबीर के इन दोहों में जीवन की क्षणभंगुरता और आत्मचिंतन की गहनता को व्यक्त किया गया है। वे कहते हैं कि यह जीवन बहुत छोटा है, लेकिन लोग इसे बाहरी दिखावे और संपत्ति के निर्माण में व्यर्थ कर देते हैं। राजा हो या रंक, अंततः सबको संसार से विदा लेना है।  कबीरजी यह भी समझाते हैं कि अहंकार और गर्व का कोई स्थान नहीं है। जो आज मान-सम्मान और वैभव से भरा हुआ है, उसे भी काल एक दिन समाप्त कर देगा। इसलिए व्यक्ति को अपने अहंकार को त्यागकर सच्चे ज्ञान की ओर बढ़ना चाहिए और सेवा तथा भक्ति को अपनाना चाहिए।

वह कहते हैं कि आज जो समय मिला है, वही सबसे अनमोल है। यदि आज का दिन बिना भक्ति और अच्छे कर्मों के व्यतीत हो जाता है, तो कल उसका कोई मूल्य नहीं रहेगा। समय हाथ से निकलता जा रहा है, और यदि व्यक्ति चेत सके, तो उसे अभी चेत जाना चाहिए।

कबीरजी अंतिम दोहों में संसार की अस्थिरता को सेमल के फूल के समान बताते हैं—जो दिखने में सुंदर होता है, लेकिन अंदर से खोखला होता है। संसार का बाहरी आकर्षण बहुत मोहक है, लेकिन यदि व्यक्ति उसमें ही उलझ जाए और सच्चे ज्ञान से दूर हो जाए, तो उसका जीवन निरर्थक हो जाएगा। उनका संदेश यह है कि व्यक्ति को संसार के भ्रम से परे जाकर सत्य और भक्ति के मार्ग पर चलना चाहिए, जिससे उसका जीवन सार्थक बन सके।
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