रचनहार कूं चीन्हि लै खैबे कूं कहा रोइ मीनिंग Rachnahar Ku Chinhi Le Meaning Kabir Ke Dohe
रचनहार कूं चीन्हि लै, खैबे कूं कहा रोइ।दिल मंदिर मैं पैसि करि, ताणि पछेवड़ा सोइ॥
Rachanhar Ku Chinhi Le, Khebe Ku Kaha Roi,
Dil Mandir Me Paisi Kari, Tani Pachhevada Soi.
कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग (अर्थ/भावार्थ) Kabir Doha (Couplet) Meaning in Hindi
कबीर साहेब के इस दोहे का भावार्थ है की तुम क्यों रोते हो ? भोजन की प्राप्ति के लिए तुम अपने सरजनहार को पहचान लो। दिल के मंदिर में पैठकर उसके ध्यान में चादर तानकर तू बेफिक्र होकर सो जाओ। पूर्ण ब्रह्म ही मालिक है और सृजनहार है, जिसे पहचानने की आवश्यकता है। रचनाकार को बाहर, मंदिर, तीर्थ आदि में ढूंढने की प्रवृति को छोड़ दो, हरी तो तुम्हारे ही हृदय में है। पुण्य कर्म करके उसे हृदय में पहचाना जा सकता है।
The essence of this couplet by Kabir Sahib is: "Why do you cry? Recognize your Creator to obtain sustenance. Sit in the temple of your heart, spread the blanket of meditation, and sleep peacefully, carefree."
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Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें। |