कबीर के दोहे हिंदी व्याख्या सहित

कबीर के दोहे हिंदी व्याख्या सहित

कबीर सपनें रैन के, ऊधरी आये नैन ।
जीव परा बहू लूट में, जागूँ लेन न देन ॥

कबीर जन्त्र न बाजई, टूटि गये सब तार ।
जन्त्र बिचारा क्याय करे, गया बजावन हार ॥

कबीर रसरी पाँव में, कहँ सोवै सुख-चैन ।
साँस नगारा कुँच का, बाजत है दिन-रैन ॥

कबीर नाव तो झाँझरी, भरी बिराने भाए ।
केवट सो परचै नहीं, क्यों कर उतरे पाए ॥

कबीर पाँच पखेरूआ, राखा पोष लगाय ।
एक जु आया पारधी, लइ गया सबै उड़ाय ॥

कबीर बेड़ा जरजरा, कूड़ा खेनहार ।
हरूये-हरूये तरि गये, बूड़े जिन सिर भार ॥

एक दिन ऐसा होयगा, सबसों परै बिछोह ।
राजा राना राव एक, सावधान क्यों नहिं होय ॥

ढोल दमामा दुरबरी, सहनाई संग भेरि ।
औसर चले बजाय के, है कोई रखै फेरि ॥

मरेंगे मरि जायँगे, कोई न लेगा नाम । 
 ऊजड़ जाय बसायेंगे, छेड़ि बसन्ता गाम ॥ 

1. कबीर सपनें रैन के, ऊधरी आये नैन।
जीव परा बहू लूट में, जागूँ लेन न देन।
अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि रात के सपने आंखों में आते हैं, लेकिन वास्तविकता में नहीं आते। इसी प्रकार, जीवात्मा अनेक जन्मों में भटकती रहती है, लेकिन जागरूकता की कमी के कारण उसे इसका एहसास नहीं होता।

2. कबीर जन्त्र न बाजई, टूटि गये सब तार।
जन्त्र बिचारा क्याय करे, गया बजावन हार।
अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि यंत्र नहीं बजता, क्योंकि उसके तार टूट गए हैं। यंत्र बेचारा क्या कर सकता है, उसकी बजाने वाली डोरी चली गई है।

3. कबीर रसरी पाँव में, कहँ सोवै सुख-चैन।
साँस नगारा कुँच का, बाजत है दिन-रैन।
अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि रस्सी पांव में बंधी हुई है, फिर भी कोई सो सकता है सुख-चैन से? सांसों का नगारा दिन-रात बजता रहता है।

4. कबीर नाव तो झाँझरी, भरी बिराने भाए।
केवट सो परचै नहीं, क्यों कर उतरे पाए।
अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि नाव तो झांझरी है, भरी हुई है बिराने से। नाविक उसे पहचानता नहीं, फिर वह कैसे उतारेगा?

5. कबीर पाँच पखेरूआ, राखा पोष लगाय।
एक जु आया पारधी, लइ गया सबै उड़ाय।
अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि पांच पक्षी पिंजरे में बंद हैं, उन्हें दाना-पानी दिया गया है। एक शिकारी आया और सभी को उड़ा ले गया।

कबीर के इन दोहों में जीवन की अस्थिरता और मृत्यु के अटल सत्य को दर्शाया गया है। वे बताते हैं कि संसार में जो भी जन्म लेता है, उसका अंत निश्चित होता है। मनुष्य सांसारिक मोह में उलझकर अज्ञानता में रहता है, लेकिन जीवन क्षणभंगुर है और मृत्यु किसी को नहीं छोड़ती।

कबीरजी कहते हैं कि जैसे कोई संगीत वाद्ययंत्र के टूट जाने पर बज नहीं सकता, वैसे ही जीवन के अंतिम समय में कोई कुछ नहीं कर सकता। सांसारिक सुखों के पीछे भागने वाले व्यक्ति को समझना चाहिए कि सांस की डोर हर क्षण कमजोर हो रही है, और अंततः सब कुछ समाप्त हो जाएगा।

उन्होंने जीवन की अस्थिरता को नाव के उदाहरण से भी स्पष्ट किया है—यदि नाव कमजोर हो और उसे चलाने वाला ही सही मार्ग न जानता हो, तो वह सही दिशा में नहीं जा सकती। यह दर्शाता है कि यदि मनुष्य गुरु के मार्गदर्शन को नहीं अपनाता, तो वह सांसारिक भ्रम में डूब सकता है।

कबीर बताते हैं कि जीवन में अचानक ही कठिनाइयाँ आती हैं, जैसे कि शिकारी द्वारा पाँच पक्षियों को पकड़ लिया जाना। यह उदाहरण दर्शाता है कि मृत्यु कभी भी आ सकती है और किसी को समय नहीं मिलेगा। इसलिए जीवन के हर क्षण को जागरूकता और भक्ति से जीना चाहिए।

वे यह भी कहते हैं कि एक दिन ऐसा आएगा जब सबको संसार से बिछड़ना होगा—राजा, रंक, अमीर, गरीब—हर व्यक्ति इस नियम से बंधा हुआ है। फिर भी लोग असावधान रहते हैं और जीवन के अनमोल समय को व्यर्थ की बातों में खो देते हैं।
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