श्रंगार सोरठा रहीम हिंदी अर्थ सहित
श्रंगार-सोरठा
गई आगि उर लाय, आगि लेन आई जो तिय ।
लागी नाहिं बुझाय, भभकि भभकि बरि-बरि उठै ।।1।।
तुरुक गुरुक भरिपूर, डूबि डूबि सुरगुरु उठै ।
चातक चातक दूरि, देह दहे बिन देह को ।।2।।
गई आगि उर लाय, आगि लेन आई जो तिय ।
लागी नाहिं बुझाय, भभकि भभकि बरि-बरि उठै ।।1।।
तुरुक गुरुक भरिपूर, डूबि डूबि सुरगुरु उठै ।
चातक चातक दूरि, देह दहे बिन देह को ।।2।।
दीपक हिए छिपाय, नबल वधू घर ले चली ।
कर विहीन पछिताय, कुच लखि जिन सीसै धुनै ।।3।।
पलटि चली मुसुकाय दुति रहीम उपजात अति ।
बाती सी उसकाय मानों दीनी दीन की ।।4।।
यक नाही यक पी हिय रहीम होती रहै ।
काहु न भई सरीर, रीति न बेदन एक सी ।।5।।
रहिमन पुतरी स्याम, मनहुँ जलज मधुकर लसै ।
कैधों शालिग्राम, रूपे के अरघा धरे ।।6।।
कर विहीन पछिताय, कुच लखि जिन सीसै धुनै ।।3।।
पलटि चली मुसुकाय दुति रहीम उपजात अति ।
बाती सी उसकाय मानों दीनी दीन की ।।4।।
यक नाही यक पी हिय रहीम होती रहै ।
काहु न भई सरीर, रीति न बेदन एक सी ।।5।।
रहिमन पुतरी स्याम, मनहुँ जलज मधुकर लसै ।
कैधों शालिग्राम, रूपे के अरघा धरे ।।6।।
सोरठा 1: इस दोहे में रहीम प्रेम की अग्नि को चित्रित करते हैं। एक नायिका अपने हृदय में प्रेम की आग लेकर प्रियतम से मिलने गई, परंतु वह आग न केवल बुझी नहीं, बल्कि बार-बार भड़ककर और प्रबल हो उठी। यह प्रेम की तीव्रता और उसकी अन नियंत्रित प्रकृति को दर्शाता है, जो नायिका के हृदय को जलाए रखती है।
सोरठा 2: यहां रहीम प्रेम की गहराई और विरह की तड़प को व्यक्त करते हैं। प्रेमी का हृदय प्रेमरूपी शराब से भरा है, जिसमें डूबकर वह बार-बार तृप्त और फिर अतृप्त होता है। चातक पक्षी की तरह वह प्रिय के बिना तड़पता है, और उसका शरीर प्रेम की अग्नि में जलता है, बिना किसी शारीरिक सुख के। यह प्रेम की आध्यात्मिक और शारीरिक तड़प का चित्रण है।
सोरठा 3: इस सोरठा में रहीम एक नववधू की भावनाओं को दर्शाते हैं, जो अपने हृदय में प्रेम का दीपक छिपाए प्रिय के घर जाती है। लेकिन प्रिय के कुच (वक्ष) को देखकर वह अपने हाथों की कमी पर पछताती है और सिर धुनती है। यह शृंगार रस में नायिका की लज्जा, प्रेम और कामुकता का सुंदर चित्रण है।
सोरठा 4: रहीम बताते हैं कि नायिका मुस्कुराते हुए पलटकर चली गई, जिससे उसकी कांतिमय छवि और भी बढ़ गई। उसकी चाल और देह की चमक ऐसी थी, मानो उसने अपनी सारी सुंदरता और प्रेम दीपक की ज्योति की तरह दीन (प्रेमी) को समर्पित कर दिया। यह प्रेम की उदारता और नायिका की मोहकता को दर्शाता है।
सोरठा 5: इस दोहे में रहीम कहते हैं कि प्रत्येक प्रेमी का हृदय प्रेम की पीड़ा से भरा होता है, परंतु यह पीड़ा हर किसी के शरीर में एक जैसी नहीं होती। प्रेम की रीति और उसका दर्द प्रत्येक व्यक्ति के लिए भिन्न होता है। यह प्रेम की व्यक्तिगत और अनन्य प्रकृति को रेखांकित करता है।
सोरठा 6: रहीम प्रियतम की तुलना श्यामवर्ण शालिग्राम से करते हैं, जो जलकमल पर भँवरे की तरह शोभायमान है। उसका रूप इतना मनोहारी है कि वह अर्घ्य देने योग्य (पूजनीय) प्रतीत होता है। यह सोरठा प्रेम और भक्ति के संयोग को दर्शाता है, जहां प्रिय का रूप ईश्वरीय और पूजनीय बन जाता है।
ये सोरठे शृंगार रस के दोनों पक्षों—संयोग और वियोग—को प्रतीकों और भावनाओं के माध्यम से सुंदरता से व्यक्त करते हैं।
