सेठ कहे तुझसे सेठ संवारा दीन भजन

सेठ कहे तुझसे सेठ संवारा दीन भजन

सेठ कहे तुझसे सेठ संवारा दीन कहे तुझे दीना नाथ,
तुम ही बताओ सेठ संवारे हो या तुम दीनो के नाथ,

सेठ बरे तेरी हज़ारी करते है तेरा मनुहार,
दीन करे बाबा तेरी चकारी आते दर पर ले परिवार,
इक भरोसा तेरा मुझको लाज मेरी है तेरे हाथ,
सेठ कहे तुझसे संवारा दीन कहे तुझे दीना नाथ,

मैं जो तुम्हे भुलाना चाहु घर आंगन में मेरे श्याम,
सोच सोच कर मैं सरमाऊ कहा बिठाऊगा मैं मेरे श्याम,
नहीं विशाने को है चादर नहीं है सिर पे मेरे छाँव,
सेठ कहे तुझसे संवारा दीन कहे तुझे दीना नाथ,

सुदामा के तंदुल भाये झूठे बेर शबरी के खाये,
दुर्योदन का महल त्याग कर विदुरानी के घर तुम आये,
सेठ कहे तुझसे संवारा दीन कहे तुझे दीना नाथ,
कब आओ गे घर तुम मेरे टीकम से तू करले बात,
सेठ कहे तुझसे संवारा दीन कहे तुझे दीना नाथ,

सुन्दर भजन में श्रीकृष्णजी की सर्वव्यापी कृपा और उनके सेठ संवारे व दीनानाथ दोनों रूपों का हृदयस्पर्शी चित्रण है। सेठ उन्हें धन-वैभव का स्वामी मानकर हजारी करते हैं, तो दीन उनकी चाकरी कर परिवार सहित दर पर आते हैं, यह दर्शाता है कि श्रीकृष्णजी सबके लिए समान हैं। भक्त का विश्वास उनकी लाज को श्रीकृष्णजी के हाथों में सौंपता है, जैसे एक बालक माता-पिता पर भरोसा करता है। यह उद्गार सिखाता है कि प्रभु का प्रेम भेदभाव नहीं करता, चाहे भक्त सेठ हो या दीन, सभी उनके अपने हैं।

भक्त अपने साधारण जीवन पर सरमाता है, सोचता है कि श्रीकृष्णजी को घर में कैसे बिठाएगा, जहाँ न छाँव है न चादर। फिर भी, सुदामा के तंदुल, शबरी के जूठे बेर और विदुरानी के घर जाने वाले श्रीकृष्णजी की सादगी उसका हृदय जीत लेती है। वे दुर्योधन के महल को ठुकराकर प्रेम की खातिर दीन के द्वार जाते हैं। टीकम जैसे भक्त की प्रार्थना कि श्याम उसके घर आए, उनकी करुणा की गहराई को दर्शाती है। जैसे वर्षा अमीर-गरीब सबको भिगोती है, वैसे ही श्रीकृष्णजी का प्रेम हर हृदय को तृप्त करता है। यह भाव प्रदर्शित करता है कि सच्ची भक्ति में केवल प्रेम और श्रद्धा मायने रखती है, न कि सांसारिक वैभव।

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