आदिनाथ चालीसा लिरिक्स हिंदी Shri Aadinath Chalisa Lyrics Jain Dharma Chalisa Hindi Lyrics
ऋषभदेव जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर हैं। तीर्थंकर का अर्थ होता है जो तीर्थ की रचना करें। जो संसार सागर (जन्म मरण के चक्र) से मोक्ष तक के तीर्थ की रचना करें, वह तीर्थंकर कहलाते हैं। ऋषभदेव जी को आदिनाथ भी कहा जाता है। भगवान ऋषभदेव वर्तमान अवसर्पिणी काल के प्रथम दिगम्बर जैन मुनि थे
जन्मभूमि - अयोध्या (उत्तर प्रदेश)
पिता - महाराज नाभिराय
माता - महारानी मरुदेवी
वर्ण - क्षत्रिय
वंश - इक्ष्वाकु
देहवर्ण - तप्त स्वर्ण सदृश
चिन्ह - बैल
आयु - चौरासी लाख पूर्व वर्ष
अवगाहना - दो हजार हाथ
गर्भ - आषाढ़ कृ.२
जन्म - चैत्र कृ.९
तप - चैत्र कृ.९
दीक्षा-केवलज्ञान वन एवं वृक्ष - प्रयाग-सिद्धार्थवन, वट वृक्ष (अक्षयवट)
प्रथम आहार - हस्तिनापुर के राजा श्रेयांस द्वारा (इक्षुरस)
केवलज्ञान - फाल्गुन कृ.११
मोक्ष - माघ कृ.१४
मोक्षस्थल - कैलाश पर्वत
पिता - महाराज नाभिराय
माता - महारानी मरुदेवी
वर्ण - क्षत्रिय
वंश - इक्ष्वाकु
देहवर्ण - तप्त स्वर्ण सदृश
चिन्ह - बैल
आयु - चौरासी लाख पूर्व वर्ष
अवगाहना - दो हजार हाथ
गर्भ - आषाढ़ कृ.२
जन्म - चैत्र कृ.९
तप - चैत्र कृ.९
दीक्षा-केवलज्ञान वन एवं वृक्ष - प्रयाग-सिद्धार्थवन, वट वृक्ष (अक्षयवट)
प्रथम आहार - हस्तिनापुर के राजा श्रेयांस द्वारा (इक्षुरस)
केवलज्ञान - फाल्गुन कृ.११
मोक्ष - माघ कृ.१४
मोक्षस्थल - कैलाश पर्वत
समवसरण में गणधर - श्री वृषभसेन आदि ८४
समवसरण में मुनि - चौरासी हजार
समवसरण में गणिनी - आर्यिका ब्राह्मी
समवसरण में आर्यिका - तीन लाख पचास हजार
समवसरण में श्रावक - तीन लाख
समवसरण में श्राविका - पांच लाख
जिनशासन यक्ष - गोमुख देव
जिनशासन यक्षी - चक्रेश्वरी देवी
समवसरण में मुनि - चौरासी हजार
समवसरण में गणिनी - आर्यिका ब्राह्मी
समवसरण में आर्यिका - तीन लाख पचास हजार
समवसरण में श्रावक - तीन लाख
समवसरण में श्राविका - पांच लाख
जिनशासन यक्ष - गोमुख देव
जिनशासन यक्षी - चक्रेश्वरी देवी
!! ऊँ ह्रीं श्री ऋषभदेवाय नम:!!
भगवान ऋषभदेव जी की एक ८४ फुट की विशाल प्रतिमा भारत में मध्य प्रदेश राज्य के बड़वानी जिले में बावनगजा नामक स्थान पर उपस्थित है। मांगी तुन्गी ( महाराष्ट्र ) में भगवान ऋषभदेव की 108 फुट की विशाल प्रतिमा है।
आदिनाथ चालीसा हिंदी
दोहा
शीश नवा अरिहंत को, सिद्धन करुं प्रणाम |
उपाध्याय आचार्य का ले सुखकारी नाम |
सर्व साधु और सरस्वती, जिन मन्दिर सुखकार |
आदिनाथ भगवान को, मन मन्दिर में धार ।।
चोपाई
जय जय आदिनाथ जिन के स्वामी, तीनकाल तिहूं जग में नामी ।
वेष दिगम्बर धार रहे हो, कर्मो को तुम मार रहे हो ।।
हो सर्वज्ञ बात सब जानो, सारी दुनिया को पहचानो ।
नगर अयोध्या जो कहलाये, राजा नभिराज बतलाये ।।
मरूदेवी माता के उदर से, चैतबदी नवमी को जन्मे ।
तुमने जग को ज्ञान सिखाया, कर्मभूमी का बीज उपाया ।।
कल्पवृक्ष जब लगे बिछरने, जनता आई दुखडा कहने ।
सब का संशय तभी भगाया, सूर्य चन्द्र का ज्ञान कराया ।।
खेती करना भी सिखलाया, न्याय दण्ड आदिक समझाया ।
तुमने राज किया नीती का सबक आपसे जग ने सीखा ।।
पुत्र आपका भरत बतलाया, चक्रवर्ती जग में कहलाया ।
बाहुबली जो पुत्र तुम्हारे, भरत से पहले मोक्ष सिधारे ।।
सुता आपकी दो बतलाई, ब्राह्मी और सुन्दरी कहलाई ।।
उनको भी विध्या सिखलाई, अक्षर और गिनती बतलाई ।
इक दिन राज सभा के अंदर, एक अप्सरा नाच रही थी ।।
आयु बहुत बहुत अल्प थी, इस लिय आगे नही नाच सकी थी ।
विलय हो गया उसका सत्वर, झट आया वैराग्य उमङ कर ।।
बेटो को झट पास बुलाया, राज पाट सब में बटवाया ।
छोड सभी झंझट संसारी, वन जाने की करी तैयारी ।।
राजा हजारो साथ सिधाए, राजपाट तज वन को धाये ।
लेकिन जब तुमने तप कीना, सबने अपना रस्ता लीना ।।
वेष दिगम्बर तज कर सबने, छाल आदि के कपडे पहने ।
भूख प्यास से जब घबराये, फल आदिक खा भूख मिटाये ।।
तीन सौ त्रेसठ धर्म फैलाये, जो जब दुनिया में दिखलाये ।
छः महिने तक ध्यान लगाये, फिर भोजन करने को धाये ।।
भोजन विधि जाने न कोय, कैसे प्रभु का भोजन होय ।
इसी तरह चलते चलते, छः महिने भोजन को बीते ।।
नगर हस्तिनापुर में आये, राजा सोम श्रेयांस बताए ।
याद तभी पिछला भव आया, तुमको फौरन ही पडगाया ।।
रस गन्ने का तुमने पाया, दुनिया को उपदेश सुनाया ।
तप कर केवल ज्ञान पाया, मोक्ष गए सब जग हर्षाया ।।
अतिशय युक्त तुम्हारा मन्दिर, चांदखेडी भंवरे के अंदर ।
उसको यह अतिशय बतलाया, कष्ट क्लेश का होय सफाया ।
मानतुंग पर दया दिखाई, जंजिरे सब काट गिराई ।
राजसभा में मान बढाया, जैन धर्म जग में फैलाया ।।
मुझ पर भी महिमा दिखलाओ, कष्ट भक्त का दूर भगाओ ।।
सोरठा
पाठ करे चालीस दिन, नित चालीस ही बार,
चांदखोडी में आयके, खेवे धूप अपार ।
जन्म दरिद्री होय जो, होय कुबेर समान,
नाम वंश जग में चले, जिसके नही संतान ।।
शीश नवा अरिहंत को, सिद्धन करुं प्रणाम |
उपाध्याय आचार्य का ले सुखकारी नाम |
सर्व साधु और सरस्वती, जिन मन्दिर सुखकार |
आदिनाथ भगवान को, मन मन्दिर में धार ।।
चोपाई
जय जय आदिनाथ जिन के स्वामी, तीनकाल तिहूं जग में नामी ।
वेष दिगम्बर धार रहे हो, कर्मो को तुम मार रहे हो ।।
हो सर्वज्ञ बात सब जानो, सारी दुनिया को पहचानो ।
नगर अयोध्या जो कहलाये, राजा नभिराज बतलाये ।।
मरूदेवी माता के उदर से, चैतबदी नवमी को जन्मे ।
तुमने जग को ज्ञान सिखाया, कर्मभूमी का बीज उपाया ।।
कल्पवृक्ष जब लगे बिछरने, जनता आई दुखडा कहने ।
सब का संशय तभी भगाया, सूर्य चन्द्र का ज्ञान कराया ।।
खेती करना भी सिखलाया, न्याय दण्ड आदिक समझाया ।
तुमने राज किया नीती का सबक आपसे जग ने सीखा ।।
पुत्र आपका भरत बतलाया, चक्रवर्ती जग में कहलाया ।
बाहुबली जो पुत्र तुम्हारे, भरत से पहले मोक्ष सिधारे ।।
सुता आपकी दो बतलाई, ब्राह्मी और सुन्दरी कहलाई ।।
उनको भी विध्या सिखलाई, अक्षर और गिनती बतलाई ।
इक दिन राज सभा के अंदर, एक अप्सरा नाच रही थी ।।
आयु बहुत बहुत अल्प थी, इस लिय आगे नही नाच सकी थी ।
विलय हो गया उसका सत्वर, झट आया वैराग्य उमङ कर ।।
बेटो को झट पास बुलाया, राज पाट सब में बटवाया ।
छोड सभी झंझट संसारी, वन जाने की करी तैयारी ।।
राजा हजारो साथ सिधाए, राजपाट तज वन को धाये ।
लेकिन जब तुमने तप कीना, सबने अपना रस्ता लीना ।।
वेष दिगम्बर तज कर सबने, छाल आदि के कपडे पहने ।
भूख प्यास से जब घबराये, फल आदिक खा भूख मिटाये ।।
तीन सौ त्रेसठ धर्म फैलाये, जो जब दुनिया में दिखलाये ।
छः महिने तक ध्यान लगाये, फिर भोजन करने को धाये ।।
भोजन विधि जाने न कोय, कैसे प्रभु का भोजन होय ।
इसी तरह चलते चलते, छः महिने भोजन को बीते ।।
नगर हस्तिनापुर में आये, राजा सोम श्रेयांस बताए ।
याद तभी पिछला भव आया, तुमको फौरन ही पडगाया ।।
रस गन्ने का तुमने पाया, दुनिया को उपदेश सुनाया ।
तप कर केवल ज्ञान पाया, मोक्ष गए सब जग हर्षाया ।।
अतिशय युक्त तुम्हारा मन्दिर, चांदखेडी भंवरे के अंदर ।
उसको यह अतिशय बतलाया, कष्ट क्लेश का होय सफाया ।
मानतुंग पर दया दिखाई, जंजिरे सब काट गिराई ।
राजसभा में मान बढाया, जैन धर्म जग में फैलाया ।।
मुझ पर भी महिमा दिखलाओ, कष्ट भक्त का दूर भगाओ ।।
सोरठा
पाठ करे चालीस दिन, नित चालीस ही बार,
चांदखोडी में आयके, खेवे धूप अपार ।
जन्म दरिद्री होय जो, होय कुबेर समान,
नाम वंश जग में चले, जिसके नही संतान ।।
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