श्री मुनिसुव्रतनाथ चालीसा भजन

श्री मुनिसुव्रतनाथ चालीसा भजन

मुनिसुव्रतनाथ या मुनिसुव्रत जैन धर्म के २० वें तीर्थंकर माने गए हैं। उनके पिता का नाम सुमित्र और माता का नाम पद्यावती था। ये भगवान राम के समकालीन माने गये हैं।उ नका जन्म राजगृह (राजगिर) और निर्वाण संमेदशिखर पर हुआ था। कछुवा उनका चिह्न बताया गया है। उनके समय में ९वें चक्रवर्ती महापद्य का जन्म हुआ जो विष्णुकुमार महापद्य के छोटे भाई थे। आगे चलकर विष्णुकुमार मुनि जैनधर्म के महा उद्धारक हुए। मुनि सुव्रतनाथ के समय में ही राम (अथवा पद्य) नाम के ८वें वासुदेव और रावण नाम के ८वें बलदेव, लक्ष्मण नाम के ८वें प्रतिवासुदेव का जन्म हुआ। 
 
अरिहंत सिद्ध आचार्य को, शत-शत करूं प्रणाम।
उपाध्याय सर्वसाधु, करते सब पर कल्याण।।

जिन धर्म, जिनागम, जिन मंदिर पवित्र धाम।
वीतराग की प्रतिमा को, कोटि-कोटि प्रणाम।।

जय मुनिसुव्रत दया के सागर, नाम प्रभु का लोक उजागर।
सुमित्रा राजा के तुम नंदा, मां शामा की आंखों के चंदा।

श्याम वर्ण मूरत प्रभु की प्यारी, गुनगान करे निश दिन नर-नारी।
मुनिसुव्रत जिन हो अंतरयामी, श्रद्धाभाव सहित तुम्हें प्रणामी।

भक्ति आपकी जो निश दिन करता, पाप-ताप-भय संकट हरता।
प्रभु संकटमोचन नाम तुम्हारा, दीन-दु:खी जीवों का सहारा।

कोई दरिद्री या तन का रोगी, प्रभु दर्शन से होते हैं निरोगी।
मिथ्या तिमिर भयो अति भारी, भव-भव की बाधा हरो हमारी।

यह संसार महादुखदायी, सुख नहीं यहां दु:ख की खाई।
मोहजाल में फंसा है बंदा, काटो प्रभु भव-भव का फंदा।

रोग-शोक-भय व्याधि मिटाओ, भवसागर से पार लगाओ।
घिरा कर्म से चौरासी भटका, मोह-माया बंधन में अटका।

संयोग-वियोग भव-भव का नाता, राग-द्वेष जग में भटकाता।
हित मित प्रिय प्रभु की वानी, सब पर कल्याण करेब मुनि ध्यानी।

भवसागर बीच नाव हमारी, प्रभु पार करो यह विरद तिहारी।
मन विवेक मेरा जब जागा, प्रभु दर्शन से कर्ममल भागा।

नाम आपका जपे जो भाई, लोकालोक संपदा पाई।

कृपादृष्टि जब आपकी होवे, धन आरोग्य सुख-समृद्धि पावे।
प्रभु चरणन में जो-जो आवे, श्रद्धा-भक्ति फल वांछित पावे।

प्रभु आपका चमत्कार है न्यारा, संकटमोचन प्रभु नाम तुम्हारा।

सर्वज्ञ अनंत चतुष्टय के धारी, मन-वचन-तन वंदना हमारी।
सम्मेदशिखर से मोक्ष सिधारे, उद्धार करो मैं शरण तिहारी।

महाराष्ट्र का पैठण तीर्थ, सुप्रसिद्ध यह अतिशय क्षेत्र।
मनोज्ञ मंदिर बना है भारी, वीतराग की प्रतिमा सुखकारी।।

चतुर्थकालीन मूर्ति है निराली, मुनिसुव्रत प्रभु की छवि है प्यारी।
मानस्तंभ उत्तुंग की शोभा न्यारी, देखत गलत मान कषाय भारी।

मुनिसुव्रत शनिग्रह अधिष्ठाता, दुख संकट हरे देवे सुख साता।
शनि अमावस की महिमा भारी, दूर-दूर से यहां आते नर-नारी।
दोहा :
सम्यक् श्रद्धा से चालीसा, चालीस दिन पढ़िए नर-नार।
मुनि पथ के राही बन, भक्ति से होवे भव पार।।



Subratnath Chalisa | श्री मुनि सुब्रतनाथ चालीसा | Shri Muni Subratnath Chalisa | Jain Chalisa
 
मुनिसुव्रत भगवान की भक्ति वह पावन मार्ग है, जो मन को संसार के दुखों से मुक्त कर मोक्ष की ओर ले जाता है। सुमित्रा और शामा के पुत्र, श्याम वर्ण वाले प्रभु, अंतर्यामी और संकटमोचन हैं, जो भक्तों के पाप, भय, और रोग हरते हैं। उनकी कृपा से दरिद्रता मिटती है, और श्रद्धा से जपने वाला सुख-समृद्धि पाता है। यह संसार मोह और राग-द्वेष का जाल है, पर मुनिसुव्रत की वाणी और दर्शन कर्मों के बंधन काटकर आत्मा को जागृत करते हैं। पैठण का तीर्थ और सम्मेद शिखर का मंदिर उनकी महिमा का प्रतीक है, जहाँ चतुर्थकालीन मूर्ति और मानस्तंभ मन को वीतरागी बनाते हैं। शनि अमावस की पूजा और चालीसा का पाठ भक्त को सम्यक् दृष्टि देता है, जिससे वह भवसागर पार कर लेता है। यह भक्ति का रस है, जो प्रभु की शरण में समर्पण और श्रद्धा से जीवन को कल्याणमय बनाता है।
 
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