तारा से जड़ दयौ चुनड़ी भजन

तारा से जड़ दयौ चुनड़ी भजन

म्हांने जा बा दयो ना, राधा रुक्मण नार उढ़ास्या, बाई ने चुनड़ी
या बाई कब से उडीके म्हारी बाट,तारा से जड़ दयौ चुनड़ी

राधा बोली श्याम सुन्दर थारे,बहन सहोदरा एक
या कद से बहन आपकी, साँची बताओ म्हाने बाट
तारा से जड़ दयौ चुनड़ी........

नरसी महतो सेठ सांवरो,करा चाकरी जाए,
नानी बाई म्हारी बाट उडीके,राधा वो तो रही बिलमाइ
तारा से जड़ दयौ चुनड़ी........

राधा रुक्मण साथ चलेगी, सज धज कर भगवान,
नानी बाई को भात भरंगा,अब ना लगाओ स्वामी बार
तारा से जड़ दयौ चुनड़ी........

नानी बाई के सासरे थाने, करणो पड़सी काम
देवर नणदल सास हठीली, बाक़ा करेगी सन्मान,
तारा से जड़ दयौ चुनड़ी........

नरसीजी की डाबड ली का ,आपा माई और बाप
समधन को सन्मान करेगी,बाई ना हिवड़े लगाई,
तारा से जड़ दयौ चुनड़ी........

सै जोड़ा सु भात भरंगा, देखे सारो संसार,
लष्मीजी की चुंदरी,नारायण के हाथ
तारा से जड़ दयौ चुनड़ी........

गंगा जमुना नीर मँगवासया, केसर लयावे भगवान
बून्द बून्द में भगत छापस्या,नरसी तो लेवे थारो नाम
तारा से जड़ दयौ चुनड़ी........


Aaja Radha Rani | आजा राधा रानी | Haryanvi Krishna Bhajan | Sonotek

चुनड़ी का तारा से जड़ना केवल बाहरी अलंकरण नहीं, बल्कि यह आत्मा की उस आकांक्षा का प्रतीक है, जिसमें भक्त स्वयं को पूर्णतः प्रभु के चरणों में समर्पित कर देना चाहता है। यह प्रतीकात्मक भाव श्रीकृष्णजी की लीला में गहराई से प्रकट होता है—जहाँ प्रेम, निष्ठा और अनुराग एक अनूठे प्रवाह में बहते हैं।

नरसीजी का स्मरण इस भजन को और भी भावमय बनाता है। भक्त की सरलता और प्रेम की अनन्यता ही उसे भगवान के समीप ले जाती है। यह भजन बताता है कि भक्ति में बाह्य रूपों का कोई स्थान नहीं, बल्कि सच्चे भाव और समर्पण ही ईश्वर तक पहुँचने का साधन बनते हैं।

गंगा-जमुना का जल और भगवान द्वारा लाए गए केसर का उल्लेख, भक्ति की पवित्रता और दिव्यता को दर्शाता है। यह भाव केवल गाने या सुनने तक सीमित नहीं रहता, बल्कि आत्मा की उस गहराई को जागृत करता है, जहाँ प्रभु के प्रति प्रेम संपूर्ण अस्तित्व को सराबोर कर देता है।

Album - Shyamji Ka Lifafa Vol 2 
Singer - Chanpreet Channi, Minakshi, Rajesh Chandra
Label - Sonotek Cassettes

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