तेरे लाला ने माटी खाई यशोदा सुन माई
तेरे लाला ने माटी खाई यशोदा सुन माई
तेरे लाला ने माटी खाई,यशोदा सुन माई।
अद्भुत खेल सखन संग खेलो।
यशोदा सुन माई।
छोटों सो माटी को ढेलों,
लै कान्हा ने मुख में मेलो,
गटक-गटक गटकाई,
यशोदा सुन माई ॥
दूध-दही को कबहुँ न नाटी,
क्यों लाला तैने खाई माटी,
यशुदा समझा रही लै साँटी,
याने नेक दया नहिं आई,
यशोदा सुन माई
मुख के माहीं आँगुली मेली,
निकल पड़ी माटी की ढेली
भीर भई सखियन की भेली,
याने देखें लोग-लुगाई,
यशोदा सुन माई ॥
मोहन का मुखड़ा फरवाया,
तीन लोक मुख अंदर पाया,
तब भरोस यशुदा कहँ आया,
ये तो पूरन ब्रह्म कन्हाई,
यशोदा सुन माई ॥
अद्भुत खेल सखन संग खेलो।
यशोदा सुन माई।
छोटों सो माटी को ढेलों,
लै कान्हा ने मुख में मेलो,
गटक-गटक गटकाई,
यशोदा सुन माई ॥
दूध-दही को कबहुँ न नाटी,
क्यों लाला तैने खाई माटी,
यशुदा समझा रही लै साँटी,
याने नेक दया नहिं आई,
यशोदा सुन माई
मुख के माहीं आँगुली मेली,
निकल पड़ी माटी की ढेली
भीर भई सखियन की भेली,
याने देखें लोग-लुगाई,
यशोदा सुन माई ॥
मोहन का मुखड़ा फरवाया,
तीन लोक मुख अंदर पाया,
तब भरोस यशुदा कहँ आया,
ये तो पूरन ब्रह्म कन्हाई,
यशोदा सुन माई ॥
tere lala ne mati khai 2017
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यशोदा सुन माई।
अद्भुत खेल सखन संग खेलो।
यशोदा सुन माई।"
यशोदा सुन माई।
अद्भुत खेल सखन संग खेलो।
यशोदा सुन माई।"
Evercharming Nand Kishore used to eat mud and butter.All his friends, the Gopis are complaining to mother Yashoda that he has had mud....This is very famous scene from the childhood of the Lord depicting his leela where he reveals to his mother that He is THE LORD...
Singer: A.Keshav Krishna Goswamiji /Maharajshri
Lyrics: Traditional
Singer: A.Keshav Krishna Goswamiji /Maharajshri
Lyrics: Traditional
भजन में श्रीकृष्णजी की बाल-लीला का रसभरा चित्रण है, जो यशोदा माँ के सामने उनकी शरारत और दिव्यता को उजागर करता है। यह वह मासूम शरारत है, जहाँ कान्हा मिट्टी खाकर सखियों के साथ खेलते हैं, और यशोदा का मन ममता से भरकर उन्हें समझाने की कोशिश करता है। यह प्रेम का वह बंधन है, जो माँ और बालक के बीच की हर शिकायत को मधुर बना देता है।
कान्हा का मिट्टी के ढेले गटकना और यशोदा का डाँटते हुए साँटी लिए समझाना उस ममता भरे रिश्ते को दर्शाता है, जो हर माँ अपने बच्चे के साथ रखती है। जैसे कोई विद्यार्थी अपनी मासूम गलती पर गुरु की डाँट सुनकर भी मुस्कुराता है, वैसे ही यहाँ कान्हा की शरारत में भी उनका अल्हड़पन झलकता है। यशोदा का मन उनकी हरकतों से परेशान, लेकिन प्रेम से लबालब है।
जब यशोदा उनके मुख में उँगली डालती हैं और मिट्टी की ढेली निकलती है, तो सखियों की भीड़ और लोग-लुगाई की उत्सुकता उस लीला की मधुरता को और बढ़ा देती है। लेकिन जब उनके मुख में तीनों लोक दिखते हैं, तो यशोदा के मन में पूर्ण ब्रह्म कन्हाई का भरोसा जागता है। जैसे कोई चिंतक साधारण सी घटना में गहरे सत्य को देख लेता है, वैसे ही यहाँ यशोदा उनकी शरारत में उनकी दिव्यता को पहचान लेती हैं।