ग्वालिन मत पकड़े मोरी बहियाँ

Gwalin Mat Pakade Mori Bahiyan Lyrics

ग्वालिन मत पकड़े मोरी बहियाँ,
मोरी दूखे नरम कलइया।
तेरो माखन मैं नहिं खायो,
अपने घर के धोखे में आयो,
मटकी ते नहिं हाथ लगायो,
हाथ छोड़ दे हा-हा खाऊँ,
तेरी लऊँ बलइयाँ ॥

ग्वालिन मत पकड़े मोरी बहियाँ,
मोरी दूखे नरम कलइया।
खोल किवारिया तू गई पानी,
भूल करी अब क्यों पछतानी,
मो संग कर रही ऐंचातानी,
झूठो नाम लगाय रही,
घर में घुसी बिलइया ॥
ग्वालिन मत पकड़े मोरी बहियाँ,
मोरी दूखे नरम कलइया।
तोको तनिक लाज नहिं आवे,
मुझ सूधे को दोस लगावे,
घर में बुला के चोर बतावे,
हाथ छोड़ दे देर होत है,
दूर निकस गईं गइयाँ ॥

ग्वालिन मत पकड़े मोरी बहियाँ,
मोरी दूखे नरम कलइया।
आज छोड़ दे सौगंध खाऊँ,
फेर न तेरे घर में आऊँ,
नित तेरी गागर उचकाऊँ,
पड़ूँ पाँव तेरे, जान दे मोहे,
बोल रह्यो बल भइया ॥


ग्वालिन मत पकड़े मोरी बहियाँ,
मोरी दूखे नरम कलइया।
शब्दार्थ: ऐंचातानी =
खींचतान, उचकाऊँ = उठाऊँ

कृष्ण जब गाय चराने जाते थे, तो वे अपनी बालसमायी लीलाओं से ब्रज के लोगों को आनंदित कर देते थे। वे गायों को चराते-चराते नंगे पैर जंगलों में घूमते थे। वे यमुना नदी में नहाते थे । वे अक्सर अपनी माखन चोरी की लीलाओं से लोगों को चकित कर देते थे। कृष्ण की गाय चराने की लीलाओं का एक विशेष पहलू यह था कि वे हमेशा गायों की रक्षा करते थे। वे उन्हें जंगली जानवरों से बचाते थे और उन्हें अच्छी तरह से खिलाते-पिलाते थे। वे गायों को अपने साथ ही रखते थे और उन्हें कभी भी अकेला नहीं छोड़ते थे। कृष्ण की गाय चराने की लीलाएं हमें बताती हैं कि वे कितने दयालु और करुणामयी थे। वे सभी जीवों की रक्षा करना चाहते थे, विशेष रूप से गायों की। गाय को हिंदू धर्म में एक पवित्र प्राणी माना जाता है और कृष्ण ने गायों की सेवा करके इस पवित्रता को बढ़ाया।


इस भजन में, कृष्ण एक बालक के रूप में अपनी माखन चोरी की लीला का वर्णन कर रहे हैं। वे एक ग्वालिन को अपने हाथों को छोड़ने के लिए मना रहे हैं, जो उन्हें माखन चोरी के लिए दोषी ठहरा रही है। कृष्ण अपनी सफाई देते हैं। वे कहते हैं कि उन्होंने ग्वालिन की मटकी से माखन नहीं चोरी किया है। उन्होंने कहा कि वह अपने घर के धोखे में आए थे और मटकी से नहीं छेड़े थे।
Next Post Previous Post