यशुदा तेरे री लाला ने मेरी मटकी फोरी
यशुदा तेरे री लाला ने मेरी मटकी फोरी री
हम दधि बेचन जात वृन्दावन, मिल ब्रज-गोरी री
गैल रोक ली हमरी और कीनी झकझोरी री ||
यशुदा तेरे री लाला ने मेरी मटकी फोरी री
दधि सब खाय मटुकिया तोड़ी, बाँह मरोड़ी री
चोरी तो सब जगह होय, तेरे ब्रज में जोरी री ||
यशुदा तेरे री लाला ने मेरी मटकी फोरी री
ले नन्दरानी हमने तेरी नगरी छोड़ी री
नाम बिगाड़े तेरा, बेशरमाई ओढ़ी री ||
यशुदा तेरे री लाला ने मेरी मटकी फोरी री
चुनरी खींच मसक दी ठोड़ी, माला तोड़ी री
पिचकारी की धार मार, उन्ने खेली होली री ||
यशुदा तेरे री लाला ने मेरी मटकी फोरी री
Yashoda Tere Lala Ne | यशोदा तेरे लाला ने | Minakshi Panchal | Krishna Bhajans | Sonotek
Album : - Radha Deewani Hui
Singer :- Minakshi Panchal
भजन में वृंदावन की गलियों की वह चंचल लीला जीवंत हो उठती है, जहाँ श्रीकृष्णजी की शरारतें और गोपियों की प्यारी शिकायतें प्रेम का रंग बिखेरती हैं। यह वह ठिठोली भरा संवाद है, जो यशोदा माँ से उनके लाला की शरारतों की शिकायत करता है। मटकी फोड़ने, दही खाने और गोपियों की बाँह मरोड़ने की बात उस मासूम शरारत को दर्शाती है, जो श्रीकृष्णजी का प्रेममय स्वभाव है। यह प्रेम का वह रंग है, जो हर गोपी के मन को मोह लेता है।
गोरी का रास्ता रोकना, चुनरी खींचना और होली की पिचकारी मारना उनकी उस लीलामय छवि को सामने लाता है, जो वृंदावन को आनंद से भर देती है। जैसे कोई विद्यार्थी अपने प्रिय मित्र की शरारतों को हँसते-हँसते बयान करता है, वैसे ही यहाँ गोपी की शिकायत में भी प्रभु के प्रति स्नेह छिपा है। यह वह प्रेम है, जो शिकायतों में भी मधुरता लिए होता है।
यशोदा से नगरी छोड़ने की बात और नाम बिगाड़ने का इल्ज़ाम उस चंचल बंधन को दर्शाता है, जो गोपियों और श्रीकृष्णजी के बीच है। जैसे कोई चिंतक प्रेम की गहराई को हल्के-फुल्के अंदाज में समझाता है, वैसे ही यहाँ गोपी की शिकायतें प्रभु की लीलाओं में डूबने का बहाना बन जाती हैं। यह वह विश्वास है, जो यह कहता है कि श्रीकृष्णजी की हर शरारत में उनका प्रेम छिपा है।
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