वृन्दावन में मुरली बजावे बजावे कृष्ण मुरारी
वृन्दावन में मुरली बजावे बजावे कृष्ण मुरारी
मुरली तीन लोक को प्यारी,बंसी तीन लोक को प्यारी,
वृन्दावन में मुरली बजावे,
बजावे कृष्ण मुरारी,
ध्यान भंग हो शंकर जी का, व्याकुल से हो रहे हैं,
बंसी की धुन सुन ब्रह्मा जी वेद पाठ तक भूल गये हैं,
दुनिया को करती मतवाली मुरली तीन लोक को प्यारी,
वृन्दावन में मुरली बजाबे ,बजाबे कृष्ण मुरारी
अपनी सुध भुध खोये बैठे बंसी को सुन सरस्वस्ती जी,
नरीत करती करते रमा कर बैठी है मन अपनी गति जी,
धुन बंसी की सब पे भारी मुरली तीन लोक को प्यारी,
वृन्दावन में मुरली बजाबे ,
बजाबे कृष्ण मुरारी
यमुना जी भी रुक रुक जाती सबा भंग हो गई इन्दर की
कमल सिंह मोहन की मुरली जाने घट के अंदर की,
श्याम की लीला सब से न्यारी मुरली तीन लोक को प्यारी,
वृन्दावन में मुरली बजाबे , बजाबे कृष्ण मुरारी
सुंदर भजन में श्रीकृष्णजी की मोहक बंसी की दिव्य महिमा प्रदर्शित की गई है। उनकी बंसी की ध्वनि केवल ब्रजवासियों को ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण सृष्टि को सम्मोहित कर देती है। यह स्वरूप भक्ति और प्रेम का ऐसा केंद्र है, जहाँ देवता, ऋषि-मुनि, प्रकृति और समस्त लोक उनके मधुर संगीत में डूब जाते हैं।
शिवजी, ब्रह्माजी और सरस्वतीजी जैसे ज्ञान और शक्ति के प्रतीक भी इस बंसी की धुन से मोहित हो जाते हैं। ब्रह्माजी, जो वेदों के ज्ञाता हैं, वेद-पाठ तक भूल जाते हैं; शिवजी ध्यानमग्न रहते हुए भी व्याकुल हो उठते हैं। यह अनुभूति बताती है कि श्रीकृष्णजी का प्रेम और उनकी लीला सांसारिक सीमाओं से परे है।
यमुना, जो उनके चरणों की साक्षी है, स्वयं उनकी ध्वनि में बंधकर थम जाती है। इंद्र, जो स्वर्ग के अधिपति हैं, उनके संगीत से प्रभावित होकर अपनी सभा की सुध-बुध खो बैठते हैं। कमल के भीतर छिपी आत्मा तक उनकी बंसी की ध्वनि को अनुभव करती है, जो इस भक्ति के गहनतम स्तर को दर्शाता है।
Related Posts: