बनोगे राधा तो ये जानोगे कि कैसा प्यार

बनोगे राधा तो ये जानोगे कि कैसा प्यार है मेरा

बनोगे राधा तो ये जानोगे,
की कैसा प्यार है मेरा।।
बनोगे राधा तो ये जानोगे,
की कैसा प्यार है मेरा,
ओ साँवरे ओ साँवरे,
ओ साँवरे ओ साँवरे।।

क्या होती प्रतीक्षा है,
क्या पीड़ा होती है,
कितना जलता है दिल,
जब आँखे रोती है,
बहेंगे आँसू तब ये जानोगे,
की कैसा प्यार है मेरा,
ओ साँवरे ओ साँवरे,
ओ साँवरे ओ साँवरे।।

जब कोई सुनेगा ना,
तेरे मन के दुखड़े,
जब ताने सुन सुन कर,
होंगे दिल के टुकड़े,
सुनोगे ताने तो ये जानोगे,
की कैसा प्यार है मेरा,
ओ साँवरे ओ साँवरे,
ओ साँवरे ओ साँवरे।।

पनघट में मधुबन मे,
वो इंतजार करना,
ऐ श्याम तेरी खातिर,
वो घुट घुट कर मरना,
करोगे इंतजार जानोगे,
की कैसा प्यार है मेरा,
ओ साँवरे ओ साँवरे,
ओ साँवरे ओ साँवरे।।

क्या जानोगे मोहन,
तुम प्रेम की भाषा,
क्या होती है आशा,
क्या होती निराशा,
करोगे प्रेम तो खुद ये जानोगे,
की कैसा प्यार है मेरा,
ओ साँवरे ओ साँवरे,
ओ साँवरे ओ साँवरे।।

अब एक तमन्ना है,
अगर फिर से जनम मिले,
मै श्याम बनु तेरा,
तू राधा बन के जिये,
बनोगे राधा तो ये जानोगे,
की कैसा प्यार है मेरा,
ओ साँवरे ओ साँवरे,
ओ साँवरे ओ साँवरे।।


ओह सवारे, बनोगे राधा तो ये जानोगे, की कैसा प्यार है मेरा - Bhajan By Mukesh Bangda

गायक : मुकेश बागड़ा

यह प्रेम सिर्फ मिलन की चाह नहीं, बल्कि इंतज़ार, पीड़ा और समर्पण का वो समंदर है, जो राधारानी के दिल में ठाठें मारता है।  जब आँखें आँसुओं से भरती हैं और दिल जलता है, तब प्रेम की प्रतीक्षा की आग को राधारानी ने जिया है। यह वह दर्द है, जो कोई तब समझता है, जब दुनिया के ताने सुनकर दिल टुकड़े-टुकड़े हो जाता है।  यह भजन प्रेम की उस भाषा की बात करता है, जिसमें आशा और निराशा एक साथ सांस लेती हैं। राधारानी कहती हैं कि श्रीकृष्णजी तब तक इस प्रेम को नहीं समझ सकते, जब तक वे खुद इस आग में न जलें। जैसे कोई धर्मगुरु सिखाता है कि सच्चा प्रेम त्याग और तप में पनपता है, वैसे ही राधारानी का प्रेम एक तपस्या है, जो श्रीकृष्णजी के लिए हर पल जलती है। 

राधा रानी की लीला और उनके जीवन का अंतिम प्रसंग प्रेम, त्याग और आध्यात्मिक एकता का अद्भुत उदाहरण है। श्रीकृष्ण ने अपनी बांसुरी बजाई, और उसकी मधुर धुन सुनते-सुनते राधा रानी श्रीकृष्ण में आत्मिक रूप से विलीन हो गईं। राधा के शरीर त्याग के बाद, श्रीकृष्ण इतने व्यथित हुए कि उन्होंने अपनी प्रिय बांसुरी को तोड़ दिया और फिर कभी नहीं बजाया। यह लीला दर्शाती है कि राधा-कृष्ण का प्रेम सांसारिक बंधनों से परे, शुद्ध आत्मिक और अमर है, जो आज भी भक्तों के लिए भक्ति, प्रेम और समर्पण की सबसे सुंदर मिसाल है।

राधा और श्रीकृष्ण के प्रेम की अमरता को समझने के लिए सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि उनका प्रेम केवल सांसारिक आकर्षण या मिलन तक सीमित नहीं था, बल्कि वह निःस्वार्थ, आत्मिक और पूर्ण समर्पण का प्रतीक था। राधा ने कृष्ण के लिए अपने अस्तित्व तक को समर्पित कर दिया, और कृष्ण ने भी राधा को अपने हृदय में सर्वोच्च स्थान दिया—इसीलिए आज भी श्रीकृष्ण के नाम के साथ राधा का नाम सबसे पहले लिया जाता है। उनका प्रेम शरीर, वासना या भौतिक संबंधों से ऊपर उठकर आत्मा और परमात्मा के मिलन का प्रतीक बन गया, जिसमें न तो स्वार्थ था और न ही किसी प्रकार की अपेक्षा। राधा-कृष्ण के प्रेम में विश्वास, समर्पण, त्याग और भावनात्मक गहराई थी, जिसमें जुदाई भी प्रेम का ही एक रूप थी, और यह प्रेम हर कठिनाई, दूरी और समाज की सीमाओं से परे था। यही कारण है कि राधा-कृष्ण का प्रेम आज भी अमर है—क्योंकि वह प्रेम हमें निःस्वार्थता, समर्पण, भावनाओं की स्वीकृति और आध्यात्मिक एकता का संदेश देता है, जो हर युग में प्रासंगिक और प्रेरणादायक है।

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