सर पे हिमालय का छत्र है चरणों
सर पे हिमालय का छत्र है चरणों में नदियाँ एकत्र है
जय भारती! वंदे भारती!
सर पे हिमालय का छत्र है,
चरणों में नदियां एकत्र हैं,
हाथों में वेदों के पत्र हैं,
देश नहीं ऐसा अन्यत्र है।।
जय भारती! वंदे भारती!
जय भारती! वंदे भारती!
धुएं से पावन ये व्योम है,
घर-घर में होता जहां होम है,
पुलकित हमारे रोम-रोम है,
आदि-अनादि शब्द ॐ है।।
जय भारती! वंदे भारती!
वंदे मातरम्! वंदे मातरम्!
जिस भूमि पे जन्म लिया राम ने,
गीता सुनाई जहां श्याम ने,
पावन बनाया चारों धाम ने,
स्वर्ग भी ना आए जिसके सामने।।
जय भारती! वंदे भारती!
वंदे मातरम्! वंदे मातरम्!
सर पे हिमालय का छत्र है,
चरणों में नदियां एकत्र हैं,
हाथों में वेदों के पत्र हैं,
देश नहीं ऐसा अन्यत्र है।।
जय भारती! वंदे भारती!
जय भारती! वंदे भारती!
धुएं से पावन ये व्योम है,
घर-घर में होता जहां होम है,
पुलकित हमारे रोम-रोम है,
आदि-अनादि शब्द ॐ है।।
जय भारती! वंदे भारती!
वंदे मातरम्! वंदे मातरम्!
जिस भूमि पे जन्म लिया राम ने,
गीता सुनाई जहां श्याम ने,
पावन बनाया चारों धाम ने,
स्वर्ग भी ना आए जिसके सामने।।
जय भारती! वंदे भारती!
वंदे मातरम्! वंदे मातरम्!